अनिता मंदिलवार ‘सपना’ की कविता “आओ मिलकर योग करें” योग के सामूहिक और सामाजिक महत्व को उजागर करती है। इस कविता में कवि ने योग के माध्यम से सामूहिकता, सामाजिक समरसता और स्वास्थ्य के लाभों का वर्णन किया है। योग को न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए बल्कि सामुदायिक एकता और सामूहिक कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण बताया गया है।
आओ मिलकर योग करें/ अनिता मंदिलवार सपना
स्वस्थ रहे तन और मन
आओ मिलकर योग करें,
स्वास्थ्य हमारा अच्छा हो
कुछ महायोग करें ।
पुस्तकें भी हमें
सिखलाते हैं यही,
संतुलित भोजन लेकर
इसका भोग करें ।
पानी की बचत करें
और इसे दूषित न करें,
प्रकृति प्रदत्त चीजों का
हम उपयोग करें ।
सूर्योदय से पहले उठकर
सूर्य नमस्कार करें,
जीवन जीने की यहीं से
नई शुरुआत करें ।
सांसों की क्रिया द्वारा
आओ प्राणायाम करें,
मन मस्तिष्क का कुछ तो
चलो व्यायाम करें ।
तन और मन की शक्ति
चलो बढ़ा लें हम,
अनुलोम-विलोम, कपालभाति से
पुलकित हर रोम करें ।
विचार यदि शुद्ध होंगे
काम करेंगे अच्छे से,
सपना पूरा होगा सबका
ऐसा योग मनोयोग करें ।
अनिता मंदिलवार सपना
अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़
अनिता मंदिलवार ‘सपना’ की यह कविता सरल, प्रवाहमयी और प्रेरणादायक भाषा में रची गई है। कविता का उद्देश्य योग के सामूहिक अभ्यास के महत्व को रेखांकित करना और पाठकों को इसे अपने जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करना है।
कविता का सार:
“आओ मिलकर योग करें” कविता में कवि अनिता मंदिलवार ‘सपना’ ने योग के सामूहिक और सामाजिक महत्व को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। कविता में बताया गया है कि मिल-जुल कर योग करने से न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि समाज में एकता, भाईचारा और सकारात्मकता भी बढ़ती है। योग का सामूहिक अभ्यास एक प्रेरणादायक और सहयोगी वातावरण का निर्माण करता है, जिसमें हर व्यक्ति अपने स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रेरित होता है। यह कविता पाठकों को योग के सामूहिक अभ्यास के लाभों को समझने और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित करती है।