आपदा विषय पर दोहा -बाबू लाल शर्मा

आपदा विषय पर दोहा -बाबू लाल शर्मा


. १
भोर कुहासा शीत ऋतु, तैर रहे घन मेह।
बगिया समझे आपदा, वन तरु समझे नेह।।


. २
तृषित पपीहा जेठ में, करे मेह हित शोर।
पावस समझे आपदा, कोयल कामी चोर।।


. ३
करे फूल से नेह वह, मन भँवरे नर देह।
पंथ निहारे मीत का, याद करे हिय गेह।।


. ४
ऋतु बासंती आपदा, सावन सिमटे नैन।
विरहा तन मन कोकिला, खोये मानस चैन।।


. ५
दुख में सुख को ढूँढता, मन को करे विदेह।
करे परीक्षण आपदा, दुर्लभ मानुष देह।।


© बाबू लाल शर्मा , विज्ञ

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