“आया बसंत”
नव पल्लव नव रंग लिए,नव नवल पुष्प का गंध लिए।
सरसों की पीली चुनरी ओढ़े, टेशू के सुन्दर रंग लिए।
खेतों और खलिहानों में, बागों और कछारों में।
जंगल और पहाड़ों में, रंग बसंती संग लिए।
उलट-पुलट चल रही बयारें, दिशा दिशा सब झूम रहे।
नव चेतन का गुँजार लिए, चहुंओर निराली सी लगती।
नभ में उज्जवल चँद्र किरण भी,थिरक रही नद सर जल में।
जैसे भौंरा गुनगुन करते,कोयल कुहू-कुहू कूक रही।
नाद नगाड़े के गुंजन से, जग जैसे बौरायी हो।
जन जन को आल्हादित करने,बसंत आया नव रंग लिए।
रविबाला ठाकुर”सुधा”
स./लोहारा, कबीरधाम
सं. नं. 9993382528
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद