ऐसा भी कल आयेगा/ अनिता तिवारी

सोच नहीं सकता था कोई,
ऐसा भी दिन आयेगा।
जीव काटकर भी यह मानव,
मार पालथी खायेगा।

प्रकृति ने उपलब्ध कराई,
सब्जी सुंदर, ताजे फल।
कंदमूल और अन्न साथ में,
पीने का था निर्मल जल।

किन्तु सीमा लाँघी इसने,
ताक रखा कानून भी सारा।
मांस भक्षण के खातिर ही,
अबोध जीवों को इसने मारा।

आज आह उन पशुओं की,
अकाल मृत्यु बन आई है।
कोरोना महामारी लाकर,
जिसने यहाँ बढ़ाई है।

संवेदन को खोकर तुमने,
विपदा स्वयं बुलाई है।
अभी संभल जा हे मानव,
जीवन से क्या रुसवाई है।

समय बीत जाने पर मानव,
हाथ नहीं कुछ आयेगा।
करनी का फल भोगेगा,
बेमौत ही मारा जायेगा।

अनिता तिवारी “देविका”
बैकुण्ठपुर (छत्तीसगढ़)