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अनजान लोग – नरेंद्र कुमार कुलमित्र

कविता संग्रह
कविता संग्रह

अनजान लोग

कितने अच्छे होते हैं अनजान लोग
उनको हमसे कोई अपेक्षा नहीं होती
हमें भी उनसे कोई अपेक्षा नहीं होती

हम गलत करते हैं
कि अनजानों से हमेशा डरे डरे रहते हैं
हर बार अनजान लोग गलत नहीं होते
फिर भी प्रायः अनजानो से दया करने में कतराते हैं

हमारे दिल दुखाने वाले प्रायः जान पहचान के होते हैं
हमें धोखा देने वाले भी प्रायः जान पहचान के होते हैं
जान पहचान वाले आपसे जलते हैं
जान पहचान वाले आपसे वादा खिलाफी करते हैं
जान पहचान वाले आपके पीठ पीछे गंदे खेल खेलते हैं

मैं उन सारे अनजानो के प्रति आभारी हूं
जो मेरे जीवन में कभी दखलंदाजी नहीं करते हैं
वे कभी झूठी सांत्वना देने नहीं आते
वे कभी बेवजह मेरी प्रशंसा नहीं करते
वे कभी मेरे रास्ते के रोड़े नहीं बनते हैं
वे कभी मेरे लिए झूठी मुस्कान नहीं बिखरते
वे कभी मुझसे प्यार और नफरत नहीं करते

समाचार पत्र में छपी खबरें प्रायः झूठ होती हैं
कि किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा चोरी या बलात्कार की गई
जांच से पता चलता है
चोर और बलात्कारी हमारे जान पहचान के होते हैं
इसीलिए मैंने अब अंजानों से डरना छोड़ दिया है
और जान पहचान वालों से संभलना शुरू कर दिया है

ऐसा नहीं की मुझे अपनों से प्यार नहीं
अपनों पर विश्वास नहीं
मगर मुझे अपनों से खाए धोखे का इतिहास पल पल डराते रहता है
अपने तो अपने होते हैं यह कहना हमेशा ठीक नहीं होता
जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं जब अनजान अपने हो जाते हैं
अनजान कम से कम अपने होने का दिखावा नहीं करते
अनजान लोगों द्वारा छले जाने पर हमें दुख नहीं होता।

—नरेंद्र कुमार कुलमित्र

9755852479

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