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तुम ही तुम हो – माधुरी डड़सेना मुदिता

कविता संग्रह
कविता संग्रह

तुम ही तुम हो

भावना में बसे हो कामना में तुम्हीं हो ।
जिंदगी बन गये हो साधना में तुम्हीं हो ।।

वादियाँ खूबसूरत हर नजारा हंसी है
ईश की बंदगी में प्रार्थना में तुम्हीं हो ।

हर गजल में भरे हो गीत की बंदिशों में
शक्ल आता नजर है आइना में तुम्हीं हो ।

इक तुम्हीं याद आते क्या करें तुम बताओ
बेखुदी छा गई है इस अना में तुम्हीं हो ।
 
हर जनम में मिले हैं नाम अपने जुदा थे
हीर मैं ही बनी थी राँझना में तुम्हीं हो ।

तुम ही हो ग्रंथ मेरे मंत्र तुम मंत्रणा भी
तुम ही विश्वास दिल के हर वफा में तुम्हीं हो ।

चाँद की चाँदनी में सूर्य की रोशनी में
इन हवाओं में घुलते हर सदा में तुम्हीं हो ।

और क्या चाहिए अब हमने सब पा लिया है
तुम जुनूँ जिंदगी की आशना में तुम्हीं हो ।

तुम ही भावों की सरिता तुम ही प्रण के हिमालय
तुम ही मुदिता की मंजिल चाहना में तुम्हीं हो ।


—- *माधुरी डड़सेना ” मुदिता “*

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