अंकुर-रामनाथ साहू ” ननकी “

अंकुर


अंकुर आया बीज में , लेता नव आकार ।
एक वृक्ष की पूर्णता , देखे सब संसार ।।
देखे सब संसार , समाहित ऊर्जा भारी ।
अर्ध खुले हैं नैन , प्रकृति अनुकूलन सारी ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , प्रगट होने को आतुर ।
नई सृष्टि आभास , बीज को देता अंकुर ।

अंकुर होते हैं खुशी , सपने लिए हजार ।
नई कई संभावना , होते अंगीकार ।।
होते अंगीकार , योजना सुखद बनाते ।
आपस में विश्वास , लक्ष्य को साध दिखाते ।
कह ननकी कवि तुच्छ ,प्रीत बढ़ता प्रति अंगुर ।
नित्यकर्म आनंद , मनुज मन होता अंकुर ।।

अंकुर देखे जब कृषक , सपना पले हजार ।
होगी फसलें जब खड़ी , अच्छा हो व्यापार ।।
अच्छी हो व्यापार ,कर्ज सब चुकता होता ।
खुशियों की बरसात , श्रमिक मन लेता गोता ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,लगे जीवन क्षण भंगुर ।
फिर भी दिखते रोज ,स्वप्न के अनगिन अंकुर ।।


—– रामनाथ साहू ” ननकी “
….मुरलीडीह

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