आओ सच्चेे मीत बनाएँ
(१६,१६)
आओ सच्चेे मीत बनाएँ,
एक एक हम वृक्ष लगाएँ।
बचपन में ये सुन्दर होते ,
नेह स्नेह के भाव सँजोते।
पालो पोषो गौरव होता।
मधुर भाव हरियाली बोता।
आज एक पौधा ले आएँ,
आओ सच्चे मीत बनाएँ।
यौवन मे छाँया दातारी,
मीठे खट्टे फल खग यारी।
चिड़िया,मैना पिक शुक आए,
मधुर सरस संगीत सुनाए।
सुन्दर नीड़,बसेरे सजते।
पावन पंछी कलरव बजते।
प्राण वायु हमको मिल जाए,
आओ सच्चे मीत बनाएँ।
वृद्ध अवस्था कठिन दौर है।
सोचो फिर तुम कहाँ ठौर है।
मीत बिना फिर कहाँ रहोगे?
किससे मन की बात करोगे?
किससे मन के भाव सुनोगे?
दुख सुख पीड़ा किसे कहोगे?
किसकी बाहों में मरना है?
किसके संग तुम्हे जलना है?
सोच,एक पौधा ले आएँ।
आओ सच्चे मीत बनाएँ।
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बाबू लाल शर्मा, बौहरा *विज्ञ*