Author: कविता बहार

  • आओ सच्चेे मीत बनाएँ

    आओ सच्चेे मीत बनाएँ

    परिवार

    (१६,१६)
    आओ सच्चेे मीत बनाएँ,
    एक एक हम वृक्ष लगाएँ।
    बचपन में ये सुन्दर होते ,
    नेह स्नेह के भाव सँजोते।

    पालो पोषो गौरव होता।
    मधुर भाव हरियाली बोता।
    आज एक पौधा ले आएँ,
    आओ सच्चे मीत बनाएँ।

    यौवन मे छाँया दातारी,
    मीठे खट्टे फल खग यारी।
    चिड़िया,मैना पिक शुक आए,
    मधुर सरस संगीत सुनाए।

    सुन्दर नीड़,बसेरे सजते।
    पावन पंछी कलरव बजते।
    प्राण वायु हमको मिल जाए,
    आओ सच्चे मीत बनाएँ।

    वृद्ध अवस्था कठिन दौर है।
    सोचो फिर तुम कहाँ ठौर है।
    मीत बिना फिर कहाँ रहोगे?
    किससे मन की बात करोगे?

    किससे मन के भाव सुनोगे?
    दुख सुख पीड़ा किसे कहोगे?
    किसकी बाहों में मरना है?
    किसके संग तुम्हे जलना है?

    सोच,एक पौधा ले आएँ।
    आओ सच्चे मीत बनाएँ।
    .
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा *विज्ञ*

  • वर्षा-विरहातप

    वर्षा-विरहातप

    वर्षा-विरहातप

    (१६ मात्रिक मुक्तक )

    कहाँ छिपी तुम,वर्षा जाकर।
    चली कहाँ हो दर्श दिखाकर।
    तन तपता है सतत वियोगी,
    देखें क्रोधित हुआ दिवाकर।

    मेह विरह में सब दुखियारे,
    पपिहा चातक मोर पियारे।
    श्वेद अश्रु झरते नर तन से,
    भीषण विरहातप के मारे।

    दादुर कोकिल निरे हुए हैं,
    कागों से मन डरे हुए हैं।
    तन मन मेरे दोनो व्याकुल,
    आशंकी घन भरे हुए है।

    बालक सारे हुए विकल हैं।
    वृक्ष लगाते, भाव प्रबल हैं।
    दिनभर कैसे पंखा फेरूँ।
    विरहातप के भाव सबल हैं।

    धरती तपती गैया भूखी।
    खेती-बाड़ी बगिया सूखी।
    श्वेद- अश्रु दो साथी मेरे,
    रीत-प्रीत की झाड़ी रूखी।

    सर्व सजीव चाह काया को,
    जीवन हित वर्षा-माया को।
    मैं हर तन मन ठंडक चाहूँ,
    याद करे सब ही छाँया को।
    . ____________
    बाबू लाल शर्मा, ‘बौहरा’ *विज्ञ*

  • मीत देश वंदन की ख्वाहिश

    मीत देश वंदन की ख्वाहिश

    tiranga

    धरती पर पानी जब बरसे
    मनभावों की नदियाँ हरषे।
    नमन् शहीदों को ही करलें,
    छोड़ो सुजन पुरानी खारिश।
    मीत देश वंदन की ख्वाहिश।

    आज नेत्र आँसू गागर है,
    यादें करगिल से सागर है।
    वतन हितैषी फौजी टोली,
    कर्गिल घाटी नेहिल बारिश,
    मीत देश वंदन की ख्वाहिश।

    आतंकी हमलों को रोकें,
    अंदर के घपलों को झोंके।
    धर्म-कर्म अनुबंध मिटा कर,
    जाति धर्म पंथांत सिफारिश,
    मीत देश वंदन की ख्वाहिश।

    राष्ट्र सुरक्षा करनी हमको,
    भाव शराफ़त भरने सबको।
    काय नज़ाकत ढंग भूलकर,
    बाहों में भर लें सब साहस,
    मीत देश वंदन की ख्वाहिश।
    . _________
    बाबू लाल शर्मा “बौहरा *विज्ञ*

  • पिता पर दोहे

    पिता पर दोहे

    पिता

    पिता क्षत्र संतान के, हैं अनाथ पितुहीन।
    बिखरे घर संसार वह,दुख झेले हो दीन।।

    कवच पिता होते सदा,रक्षित हों संतान।
    होती हैं पर बेटियाँ, सदा जनक की आन।।

    पिता रीढ़ घर द्वार के,पोषित घर के लोग।
    करें कमाई तो बनें,घर में छप्पन भोग।।

    पिता ध्वजा परिवार के, चले पिता का नाम।
    मुखिया हैं करते वही , खेती के सब काम।।

    माता हो ममतामयी,पितु हों पालनहार।
    आज्ञाकारी सुत सुता,सुखी वही घर द्वार।।

    ✍️

    सुश्री गीता उपाध्याय रायगढ़ छत्तीसगढ़

  • तिरंगा (चौपाई छंद)

    तिरंगा (चौपाई छंद)

    छंद
    छंद

    आजादी का पर्व मनालो।
    खूब तिरंगा ध्वज पहरालो।।
    संगत रक्षा बंधन आया।
    भ्रात बहिन जन मन हर्षाया।।१

    राखी बाँधो देश हितैषी।
    संविधान संसद सम्पोषी।।
    राखी बाँध तिरंगा रक्षण।
    राष्ट्र भावना बने विलक्षण।।२

    जन जन का अरमान तिरंगा।
    चाहे बहिन भ्रात हो चंगा।।
    रक्षा सूत्र तिरंगा चाहत।
    धरा बहिन न होवे आहत।।३

    राखी बंधन खूब कलाई।
    मान तिरंगे को निज भाई।।
    भारत का सम्मान तिरंगा।
    अटल हिमालय पावन गंगा।।४

    जन जन का है आज चहेता।
    शान तिरंगे हित जन चेता।
    संगत दोनो पर्व मनाएँ।
    राष्ट्र गान ध्वज सम्मुख गाएँ।।५

    बाँध तिरंगे को अब राखी।
    नभ तक लहरा जैसे पाखी।।
    शर्मा लिखे छंद चौपाई।
    धरा तिरंगा प्रीत मिताई।।६
    . __
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा