Author: कविता बहार

  • नभ में छाए काले मेघ

    नभ में छाए काले मेघ

    kavita

    नभ में छाए काले मेघ.
    झूमती धरती इसको देख.
    बिन नीर प्यासी धरा पर,
    मेघ लाते आशाएं अनेक।

    खेत लहराए अपनी आँचल,
    बागों में आ जाती नई जान.
    रंग-बिरंगी कोमल पुष्पों से,
    छा जाती लबों में मुस्कान.

    हरियाली और खुशहाली,
    अब सुखहाली भी आएगी.
    बरसों से संजोया सपना ,
    वो भी अब पूरी हो जाएगी.

    आज तपी सूखी मिट्टी पर,
    गिरे पानी लेके काली की भेष.
    बिजली जिसका आगमन संदेश.
    देर न करो अब, हे देव अमरेश!
    नभ में छाए काले मेघ.

    संगीता

  • होली पर्व -कुण्डलियाँ

    होली पर्व -कुण्डलियाँ

    होली पर्व पर कुण्डलियाँ ( Holi par Kundaliya) का संकलन हिंदी में रचना आपके समक्ष पेश है . होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। 

    होली पर्व – कुण्डलियाँ

    Holi par kavita
    Holi par kavita

    होली के इस पर्व पर, मेटे सब मतभेद।
    भूल गिला शिकवा सभी, खूब जताये खेद।
    खूब जताये खेद, शिकायत रह क्यों पाये।
    आपस मे रह प्रेम, उसे भूले कब जाये।
    मदन कहै समझाय,खुशी की भर दे झोली।
    जीवन हो मद मस्त, प्यार की खेलें होली।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

    होली की कविता

    होली छटा निहारिए, बरस रहा मधु रंग ।
    मंदिर-मस्जिद प्रेम से, खेल रहे मिल संग ।।
    खेल रहे मिल संग, धर्म की भींत ढही है ।
    अंतस्तल में आज, प्रीत की गंग बही है ।।
    कहे दीप मतिमंद, रहे यह शुभ रंगोली ।
    लाती जन मन पास, अरे मनभावन होली ।।

    -अशोक दीप

    होली पर पारम्परिक कथा

    होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।

  • जिंदगी पर कविता

    जिंदगी पर कविता

    kavita

    ज़िंदगी,क्यों ज़िंदगी से थक रही है,
    साँस पर जो दौड़ती अब तक रही है।

    मंज़िलें गुम और ये अंजान राहें,
    कामयाबी चाह की नाहक रही है ।

    भूख भोली है कहाँ वो जानती है!
    रोटियाँ गीली, उमर ही पक रही है।

    हो गए ख़ामोश अब दिल के तराने,
    बदज़ुबानी महफ़िलों में बक रही है।

    लाश पर इंसान के जो भी बनी है,
    राह क्या इंसान के लायक रही है।

    आसमां में छा गई हैं बददुआएँ,
    ये ज़मी फ़िर भी दुआ को तक रही है।

    बिलबिलाती भूख में पगडंडियाँ हैं,
    राह शाही भोग छप्पन छक रही है।

    रेखराम साहू

  • मिल्खा सिंह राठौड़ पर कविता

    मिल्खा सिंह राठौड़ पर कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    उड़न सिक्ख मिल्खा सिंह जी,
    इक राजपूत राठौड़ भए।
    दौड़ दौड़ कर दुनियां में,
    दिल से दिल को जोड़ गए।।

    वो उस भारत में जन्मे थे,
    जो आज पाक का हिस्सा है।
    कहूं विभाजन की क्या मैं,
    जो इक काला किस्सा है।।
    सिंह साक्षी थे उसके,
    जहां मारे कई करोड़ गए…

    अपने प्रियजन मरते देखे,
    अपनी ही आंखों आगे।
    फिर भारत माँ की गोद चुनी,
    रिश्ते नाते सब त्यागे।।
    घर बार छोड़कर यूं भागे,
    ज्यूं सबसे ही मुंह मोड़ गए…

    शरणार्थी शिविर शरण पाई,
    पर दौड़ रखी उसने जारी।
    भारतीय सेना हो भर्ती,
    खेली उसने नई पारी।।
    ये दर्द समय के दिए हुए,
    जीवन में सीखें छोड़ गए…

    ये वही पाक की भूमि थी,
    आंखों में वही नज़ारा था।
    खालिक को हरा खरे सिख ने,
    मुंह आज तमाचा मारा था।।
    “फ्लाइंग सिख” तमगा पाया,
    सब पाकी दिल झंकझौड़ गए…

    वो सैकिंड का सौंवां हिस्सा था,
    जो मिल्खा मान गंवारा था।
    जहां पाक धरा पर विजय मिली,
    वहीं रोम ओलंपिक हारा था।।
    चार्ल्स डिंकेंस से पा शिक्षा,
    कीर्तिमान कई तोड़ गए…

    रजपूती रक्त रगों में था,
    पंजप्यारी ताकत कदमों में।
    वतन परस्ती के ज़ज़्बे,
    रहते थे हरदम सपनों में।।
    कभी-कभी तो धावक पथ पर,
    नंगे पैरों दौड़ गए…

    पदकों की बरसात हुई,
    बड़ा मान और सम्मान मिला।
    मिल्खा ने परचम फहराया,
    तो पूरा हिंदुस्तान खिला।।
    जीवन दौड़ हुई पूरी,
    वो आज तिरंगा ओढ़ गए…

    शिवराज सिंह चौहान
    नांधा, रेवाड़ी
    (हरियाणा)
    १८/१९-०६-२०२१

  • धर्म पर कविता- रेखराम साहू

    धर्म पर कविता- रेखराम साहू

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    धर्म जीवन का सहज आधार मानो,
    धारता है यह सकल संसार मानो।

    लक्ष्य जीवन का रहे शिव सत्य सुंदर,
    धर्म का इस सूत्र को ही सार मानो।

    देह,मन,का आत्म से संबंध सम्यक्,
    धर्म को उनका उचित व्यवहार मानो।

    दंभ मत हो,दीन के उपकार में भी,
    दें अगर सम्मान तो आभार मानो।

    भूख का भगवान पहला जान भोजन,
    धर्म पहला देह का आहार मानो।

    व्याकरण भाषा भले हों भिन्न लेकिन,
    भावना को धर्म का उद्गार मानो।

    हो न मंगल कामना इस विश्व की तो,
    ज्ञान को भी धर्म पर बस भार मानो।

    प्रेम करुणा को सरल सद्भावना को,
    धर्म-मंदिर का मनोहर द्वार मानो।

    हैं अतिथि,स्वामी नहीं संसार के हम,
    चल पड़ेंगे बाद दिन दो चार मानो।

    रेखराम साहू