Author: कविता बहार

  • बुजुर्गों के सम्मान पर कविता

    बुजुर्गों के सम्मान पर कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    बुजुर्ग, परिवार-आधार-स्तंभ, इनका करो सम्मान,
    करो सेवा सहृदय से, इनका मत करो अपमान।
    करो सत्कार बुजुर्गों पर ,रोको इन पर अत्याचार,
    बड़ा खुशनसीब है वो जिसे मिला, बुजुर्गों का प्यार।


    परोपकार का हमको देते ये ज्ञान,
    बुजुर्गों का हमेशा करो सम्मान।
    अब बुजुर्ग हो गया कमजोर और लाचार,
    बहुत खुशनसीब है वो जिसे मिला,बुजुर्गों का प्यार।


    बुजुर्गों का शान और ताकत की है ये कहानी,
    अथक-कठीन प्रयास से बनायी हमारी जिंदगानी।
    पत्थर को भी बनादे मिट्टी एसी थी उनकी जवानी,
    हर ख्वाहिश को कर दिया मुकम्मल चाहे लाभ हो या हानि।


    ऎसे महान लोगों की सेवा हमको अब नहीं गंवानी,
    नहीं रहा उनमें ताकत बन गए वो अब नाना- नानी।
    करो सेवा पुरे मन से लेलो आशीर्वाद रूपी उपहार,
    बहुत खुशनसीब है वो जिसे मिला, बुजुर्गों का प्यार।


    भूखे पेट रहकर भी हमको खाना खिलाया,
    फटे कपड़े पहनकर हमको नया लिबास दिलाया।
    ममतामई – रोली सुनाकर हमको प्यार से सुलाया,
    ऐसे महान लोगों का दिल तुने क्यों दुःखाया।
    बुजुर्गों को चाहिए प्यार – दुलार भरा व्यवहार,
    बहुत खुशनसीब है वो जिसे मिला, बुजुर्गों का प्यार।


    बुजुर्गों की कर सेवा निभाओ अपना धर्म,
    रखना अपने पास इनको मत भेजना वृद्धा-आश्रम।
    बुजुर्गों के लाठी का सहारा बनके देखो तो एकबार,
    बहुत खुशनसीब है वो जिसे मिला, बुजुर्गों का प्यार।



    अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.

  • जीवन में संगीत ही आधार है

    जीवन में संगीत ही आधार है

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    संगीत से ही जुडा़ जीवन,
    जीवन में संगीत ही आधार है ।
    मां की लोरी में पाया संगीत की झंकार है।
    पापा के गीतों में पाया खुशियां अपार है ।


    बारिश की कल कल बूंदो में
    आती संगीत की बयार है ।
    कलियों की खिलने में
    भंवरे करते संगीतमय मनुहार है ।


    कोयल का मीठा संगीत लाता
    जीवन में खुशियों की झंकार है ।
    बारिश में मयूर का नर्तन
    देता खुशियां अपार है ।


    जब होता मिलन धरती और आकाश का ,
    मेंढक लगाता टर्र – टर्र की गुहार है।
    पूजा, प्रार्थना या इबादत
    ईश्वर को संगीतमय स्वीकार है ।


    संगीतमय हो यह अपना जीवन
    जीवन में रहे नित खुशियां हजार है

    एकता गुप्ता “काव्या”
    उन्नाव उत्तर प्रदेश

  • रक्तदान महादान / अमिता गुप्ता

    रक्तदान महादान / अमिता गुप्ता

    विश्व रक्तदान दिवस हर वर्ष 14 जून को मनाया जाता है विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस दिन को रक्तदान दिवस के रूप में घोषित किया गया है। 

    रक्तदान महादान /अमिता गुप्ता

    रक्तदान महादान / अमिता गुप्ता


    (विश्व रक्तदाता दिवस)

    रक्तदान है महादान
    निष्प्राण को दे जीवनदान,
    इससे होता जनकल्याण
    मानव तू बना अपनी पहचान।

    रक्तदान साबित होता,
    निस्सहाय को वरदान,
    रक्त की एक एक बूंद
    टूटती सांसों को दे नव प्राण।

    तोड़ो मिथक तोड़ो भरम,
    रक्तदान की असली कीमत जान,
    रक्त तंत्र यह शुद्ध करें,
    सेहत को पहुंचाएं ना नुकसान।।


    –✍️ अमिता गुप्ता
    कानपुर,उत्तर प्रदेश

  • रामनिवास बने अतिसुंदर / तोषण कुमार चुरेन्द्र ‘दिनकर’

    रामनिवास बने अतिसुंदर / तोषण कुमार चुरेन्द्र ‘दिनकर’

    राम/श्रीराम/श्रीरामचन्द्ररामायण के अनुसार,रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र, सीता के पति व लक्ष्मणभरत तथा शत्रुघ्न के भ्राता थे। हनुमान उनके परम भक्त है। लंका के राजा रावण का वध उन्होंने ही किया था। उनकी प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है क्योंकि उन्होंने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता तक का त्याग किया।

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    रामनिवास बने अतिसुंदर / तोषण कुमार चुरेन्द्र ‘दिनकर’

    राम का राज आएगा फिर से कि,
    धीरज धार बनाए चलो सब।
    स्वप्न अधूरा होगा नहीं बाँधव,
    नींव डलेगी अवधपुर में अब।

    गाँव जगा है समाज जगा है,
    जगा है जहाँ सकल जग सारा।
    राम निवास बनायेंगे मिलकर हम,
    पुनित यह सौभाग्य हमारा।

    गिद्धराज जटायु को तारे
    बेर जूठे शबरी के खाए।
    लाज रखे मिताई की प्रभु ने
    सुग्रीव को है राज दिलाए।

    बन गिलहरी सब कर्म करेंगे,
    सेवक भक्त हनुमान दुलारे।
    रहे सदा निज धाम सदा जो,
    राम लखन के पुर रखवारे।

    चौदह बरस बनवास खटे हैं,
    मर्यादा का ज्ञान है बाँटे।
    कंकड़ पत्थर राह चले नित,
    फिक्र नहीं किये चुभते काँटे।

    आज मिला है ठाँव प्रभु को,
    धन्य मनाएँ देश के वासी।
    मानों लगता सारा चमन ये,
    हर घर मथुरा हर घर काशी।

    नल नील बनकर तोषण दिनकर,
    नींव की ईंट चढ़ाने लगे हैं।
    जय रघुनंदन जय दुखभंजन,
    राम सियावर गाने लगे है।

    आओ संतो मिलकर हम सब,
    एक एक ईंट उठाते चलेंगे।
    रामनिवास बने अतिसुंदर,
    एक एक पग बढाते चलेंगे।

    कृति
    तोषण कुमार चुरेन्द्र ‘दिनकर’

  • जाग्रत हो हे भारतवासी

    जाग्रत हो हे भारतवासी

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    जहाँ कभी पुष्प वाटिका हुआ करती थी,
    वहाँ आज लाशों का अंबार लगा हुआ है ,

    जो जमीन कभी सोने की चिड़िया होती थी ,
    वहाँ आज लाशों का विछावन बिछा है ,

    जो कभी विश्व का भाग्य विधाता हुआ करता था ,
    वो आज भिखारी बना घुमाता है ,

    जहाँ कभी मंदिरो मे मेले लगते थे ,
    आज वहाँ शमशानों पर मेले लगते है ,

    जहाँ कभी सभी धर्मो का सम्मान हुआ करता था ,
    आज वहाँ धार्मिक कट्टरता हुआ करती है ,

    जो कभी साधु- संतों की नगरी हुआ करती थी ,
    आज वहाँ आज बाजार बना बैठा है ,

    जहाँ कभी ईमानदारी की आवाजें गूँजती थी ,
    आज वहाँ बेईमानों का अड्डा हुआ करता है ,

    जहाँ के ज्ञान व विज्ञान की कभी विश्व पूजा करता था ,
    आज वहा अज्ञानता का पर्याय बना बैठा है ,

    जहाँ कभी दानी ज्ञानी महाराजाओं का राज हुआ करता था ,
    आज वहाँ अनपढ़ बेईमानों का राज हुआ करता है ,

    जहाँ कभी शिक्षित – विद्वान ही गुरु हुआ करते थे ,
    आज वहाँ चोरी के नम्बरों पर शिक्षक ज्ञानदाता बन बैठे है ,

    जहाँ कभी सत्य और अहिंसा की पूजा होती थी ,
    आज वहाँ असत्य और हिंसा का बोलबाला हुआ करता है ,

    जहाँ कभी राम, रहीम, बुद्ध, गाँधी आजाद का आदर होता था ,
    वहाँ आज हिंसावादी नेताओं, आतंकवादियों की पूजा होती है ,

    जहाँ की मिट्टी मे सिर्फ शांति का वास था ,
    वहाँ की अब मिट्टी में खून, अशांति का घर है ,

    जहाँ कभी स्त्रियों को देवी का रुप माना जता था ,
    वहाँ अब स्त्रियों पर अत्यचार, हिंसा हुआ करता है ,

    जहाँ सुकून भरी ठंडी हवाएँ गुजरती थीं खूबसूरत वादियों से,
    आज वहाँ साँस लेना दुष्कर है,

    जहाँ कभी सूरज की पहली रोशनी से सवेरा होता था ,
    वहाँ आज सूरज की अंतिम रोशनी से सवेरा होता है ,

    जहाँ कभी नेताओं के सिर पर खादी की टोपी होती थी ,
    वहाँ आज नेताओं के सिर पर भ्रष्टाचार की टोपी है ,

    जहाँ पर कभी नदियाँ माँ सम मानी जाती थीं ,
    आज उनमें लाशों की नावें चल रही है ,

    भारत जो कभी विश्व मे ज्ञान का सागर कहा जाता था ,
    वही भारत आज अज्ञानी कहा जाता है ,

    जहाँ कभी यमुना, गंगा , सरस्वती की आरती होती थी ,
    आज वहाँ लाशों की आहुतियां होती है ,

    जिस भारत को कभी जगत का बगीचा कहा जाता था ,
    आज वहाँ ऑक्सिजन की कमी हो गई है ,
    ऐसा क्यों ?

    यह जो आज का भारत है, ऐसा क्यों है?
    जाग्रत हो हे भारतवासी……!

    – रुपेश कुमार©️
    चैनपुर , सीवान , बिहार