क्यों काट रहे हो जंगल (वन बचाओ आधारित कविता)
क्यों कर रहे हो अहित अमंगल!
क्यों काट रहे हो तुम जंगल!!
धरती की हरियाली को तूने लूटा!
बताओ कितने जंगल को तूने काटा!!
वनों में अब न गुलमोहर न गूलर खड़ी है!
हरी-भरी धरती हमारी बंजर पड़ी है!!
अगर ये जंगल नहीं रहा तो,
कजरी की गीत कहां गा पाऐंगे!
सावन में खुशहाली की त्यौहार,
हरियाली भी कहां मना पाऐंगे!!
सावन आयेगा पर हरियाली नहीं रहेगा!
फिर सावन में खुशहाली नहीं रहेगा!!
अगर जंगल नहीं रहेगा तो तुम भी कहां रहोगें!
क्या खाओगे बोलो और क्या सांस लोगे!!
जहर स्वयं पीती है पेड़!
और अमृत भी देती है पेड़!!
फिर भी तूने यह जानकर!
अपनी स्वार्थ में आकर!!
ये कैसा अनीष्ट कर दिया!
तूने पेड़ो को नष्ट कर दिया!!
न जंगल रहेगा न जंगल का राजा बचेगा!
फिर जंगल के जीव किसे राजा कहेंगा!!
अपना महल बनाकर तूने उनका घर उजाड़ा है!
अपनी स्वार्थ के लिए प्रकृति का संतुलन बिगड़ा है!!
अपनी ही हाथों से अपनी ही अर्थी निकाली है!
तूने अपनी ही जीवन संकट में डाली है!!
प्रकृति ने पीपल,बरगद नीम, और वृक्ष देवदार दिया!
अंगूर,सेब,आम,केला कटहल जैसे फलदार दिया!!
तुम रक्षक नहीं भक्षक बन बैठे हो!
इन्हीं पेड़ों को तुम नष्ट कर बैठे हो!!
जिसने तुम्हें जीने के लिए जीवन दिया!
सांस लेने के लिए पवन दिया!!
खाने के लिए तुम्हें अन्न दिया!
और बहुत सारा ईंधन दिया!!
उसी को आज तूने क्या किया!
कुल्हाड़ी से उन पर वार किया!!
फिर जंगल से जीवों को निष्कासित किया!
उस पर शहर,उद्योग,कारखाने स्थापित किया!!
आज इसलिए समस्या बढ़ रहीं हैं!
प्रकृति में जो परिवर्तन हो रहीं हैं!!
कहीं बाढ़ तो कहीं ग्लेशियर का पिघलना!
कहीं सूखा तो कहीं जलस्तर का बढ़ना!!
कहीं चक्रवात तो कहीं तूफान!
प्रकृति ले रहीं हैं, अनेकों जान!!
अब तो तुम, न बनो नदान!
अब तो सुधर जाओ इंसान!!
नाम – बिसेन कुमार यादव’बिसु’
ग्राम-दोन्दे कला थाना-विधानसभा,जिला-रायपुर छत्तीसगढ़