Author: कविता बहार

  • क्यों काट रहे हो जंगल -बिसेन कुमार यादव’बिसु’ (वन बचाओ आधारित कविता)

    क्यों काट रहे हो जंगल (वन बचाओ आधारित कविता)

    poem on trees
    poem on trees

    क्यों कर रहे हो अहित अमंगल!
    क्यों काट रहे हो तुम जंगल!!

    धरती की हरियाली को तूने लूटा!
    बताओ कितने जंगल को तूने काटा!!

    वनों में अब न गुलमोहर न गूलर खड़ी है!
    हरी-भरी धरती हमारी बंजर पड़ी है!!

    अगर ये जंगल नहीं रहा तो,

    कजरी की गीत कहां गा पाऐंगे!

    सावन में खुशहाली की त्यौहार,
    हरियाली भी कहां मना पाऐंगे!!

    सावन आयेगा पर हरियाली नहीं रहेगा!
    फिर सावन में खुशहाली नहीं रहेगा!!

    अगर जंगल नहीं रहेगा तो तुम भी कहां रहोगें!
    क्या खाओगे बोलो और क्या सांस लोगे!!

    जहर स्वयं पीती है पेड़!
    और अमृत भी देती है पेड़!!

    फिर भी तूने यह जानकर!
    अपनी स्वार्थ में आकर!!

    ये कैसा अनीष्ट कर दिया!
    तूने पेड़ो को नष्ट कर दिया!!

    न जंगल रहेगा न जंगल का राजा बचेगा!
    फिर जंगल के जीव किसे राजा कहेंगा!!


    अपना महल बनाकर तूने उनका घर उजाड़ा है!
    अपनी स्वार्थ के लिए प्रकृति का संतुलन बिगड़ा है!!

    अपनी ही हाथों से अपनी ही अर्थी निकाली है!
    तूने अपनी ही जीवन संकट में डाली है!!

    प्रकृति ने पीपल,बरगद नीम, और वृक्ष देवदार दिया!
    अंगूर,सेब,आम,केला कटहल जैसे फलदार दिया!!

    तुम रक्षक नहीं भक्षक बन बैठे हो!
    इन्हीं पेड़ों को तुम नष्ट कर बैठे हो!!

    जिसने तुम्हें जीने के लिए जीवन दिया!
    सांस लेने के लिए पवन दिया!!

    खाने के लिए तुम्हें अन्न दिया!
    और बहुत सारा ईंधन दिया!!

    उसी को आज तूने क्या किया!
    कुल्हाड़ी से उन पर वार किया!!

    फिर जंगल से जीवों को निष्कासित किया!
    उस पर शहर,उद्योग,कारखाने स्थापित किया!!

    आज इसलिए समस्या बढ़ रहीं हैं!
    प्रकृति में जो परिवर्तन हो रहीं हैं!!

    कहीं बाढ़ तो कहीं ग्लेशियर का पिघलना!
    कहीं सूखा तो कहीं जलस्तर का बढ़ना!!

    कहीं चक्रवात तो कहीं तूफान!
    प्रकृति ले रहीं हैं, अनेकों जान!!

    अब तो तुम, न बनो नदान!
    अब तो सुधर जाओ इंसान!!



    नाम – बिसेन कुमार यादव’बिसु’
    ग्राम-दोन्दे कला थाना-विधानसभा,जिला-रायपुर छत्तीसगढ़

  • सम्भल जाओ आज से- प्रिया सिंह

    सम्भल जाओ आज से- प्रिया सिंह

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    भारत वर्ष की बेटी हूं, समझ गई अपना अधिकार ।
    अन्याय नहीं सहन करेंगे, अब मेरी भी वाणी में धार।
    अब चाहोगे तुम रोकना हमें , अपने आदतन अंदाज से।
    पर रोकने वाले!  खुद रुक जाओ, सम्भल जाओ आज से ।

    जितना करना था अत्याचार हम पर, उसको हम सह गये।
    सहते सहते तेरा दुर्व्यवहार, हम केवल घर तक ही रह गये।
    जाना न था हममें भी लावा ,जो जला के रख दे तुझे राख से।
    अब रोकने वाले ! खुद रुक जाओ, सम्भल जाओ आज से ।

    सोचने की भूल मत करना कि, हम हैं जल की शीतल धार।
    प्रज्वलित ज्वाला की ज्योति हम, बहती तेज नदी की धार ।
    अब मैंने अपनी वजूद को जाना , तू ये जान ले आज से।
    हां रोकने वाले! खुद रुक जाओ, सम्भल जाओ आज से ।

  • 03 जून विश्व साइकिल दिवस पर दोहे

    03 जून विश्व साइकिल दिवस पर दोहे

    03 जून विश्व साइकिल दिवस पर दोहे

    03 जून विश्व साइकिल दिवस पर दोहे

    पाँवगाड़ी


    साइकिल साधन एक है,सस्ता और आसान।
    जिसकी मर्जी वो चले, चल दे सीना तान।।

    बचपन साथी संग चढ़, बैठे मौज उड़ाय।
    धक्का दें साथी गिरे त, उसको खूब चिड़ाय।।

    आगे पीछे बीच में, तीन पीढ़ी बिठाय।
    हँसते गाते बढ़े चलें, देख लोग हरसाय।।

    खुद ढोती व बोझ संग, खर्चे भी कम कराय।
    जब मिले मजबूर कोई, उसको लेत बिठाय।।

    नर नारी सब चले, जग में सिर उठाय।
    जब कहीं खराब होवे, जलदी से बन जाय।।

    बढ़ती चर्बी और वसा, पैडल से घुल जाय।
    कब्ज अम्लता दूर कर , सुंदर करे सुभाय।।

    नित साइकिल का प्रयोग, अस्थि मजबूत बनाय।
    जोड़ दर्द और गठिया, होने कभी न पाय।।

    साधन छोटा है मगर, गली गली पहुँचाय।
    वायु न दूषित करे,ईंधन खर्च बचाय।।

    कितने भी धनवान हों, तनिको ना शरमाँय।
    विषम समय बैद्य कहते, इसको रोज चलाँय।।

    सुबह सायम जो साथी, साइकिल नित चलाँय,
    स्वस्थ सुन्दर निरोग व, कांतिमय तन पाँय।।


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    अशोक शर्मा, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
    ”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””

  • तिल-तिल कर हम जलना सीखें

    तिल-तिल कर हम जलना सीखें

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    जीवन दीप वर्तिका तन की, स्नेह हृदय में भरना सीखें।
    दानवता का तिमिर हटाने, तिल-तिल कर हम जलना सीखें।


    अमा निशासी घोर निशा हो, अन्धकारमय दसों दिशा हों।
    झंझा के झोंके हों प्रतिपल, फिर भी अविचल चलना सीखें ॥ तिल..


    बीहड़ वन चाहे नद – नाले, शैल शृंगार
    भी बाधा डालें।
    कुश-कंटक-युत पंथ विकट हो, काँटों को हम दलना सीखें॥ तिल

    स्नेह-सुधा पी जगती जीती, स्तुति सुमनों से पुलकित होती।
    निंदा-गरल पचाकर प्रमुदित, ज्वाला में हम पलना सीखें। तिल..


    तिमिर-ग्रस्त मानव बेचारे, स्वार्थ – मोह रजनी से हारे।
    प्राण-प्रदीप प्रभा फैलाने, कण-कण कर हम जलना सीखें। तिल..

  • मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे

    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।  

    poem on trees
    poem on trees

    कटेंगे वृक्ष , जंगल में तो,
    कैसे होगा विश्व में मंगल,
    बढ़ती जनसंख्या से हो रहा,
    जब संसार में मानव – दंगल।
    पर्यावरण समस्या को सुलझाऐंगे,
    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।


    मधुमक्खियों का शहद
    और चिड़ियों की आवाज,
    कंद – मूल फल में छिपा
    है स्वस्थ सेहत का राज।
    करते ये वायु को शुद्ध,
    तो क्यों इस पर जुल्म ढाऐंगे,
    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।  


    करते मनुष्य हर जगह वृक्ष का उपयोग,
    माना होता नहीं कहीं भी इसका दुरुपयोगl
    बड़े नाव – मकान – बांध निर्माण से लेकर,
    माचिस तिल्ली में भी होता इसका प्रयोग।
    चिपको आंदोलन के जन्मदाता,
    बहुगुणा को कैसे हम भुलाऐंगे,
    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।  

    अशुद्ध हवा को लेकर शुद्ध हवा देती है,
    बरसात कराती, धुप में शीतल छाँव देती है।
    ओजोन परत की समस्या करती है ये दूर,
    फिर भी स्वार्थ में वृक्ष काटने को लोग हैं मजबूर।
    वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ अभियान ज्योत
    चलो अब घर गांव शहर में जलाऐंगे,
    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।  


    अशुद्धता को लेती शुद्धता को करती ये दान।
    करो रखवाली वृक्ष का तुम न लो इनकी जान।
    पर्यावरण प्रदूषण हो गई अब तो जटिल
    इस समस्या को हम जल्द ही सुलझाऐंगे,
    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।  



    अकिल खान रायगढ़