मातृभूमि- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
उसकी आँखों का पानी
सूख चुका था
उसकी मरमरी बाहें
आज भी
इंतजार कर रही हैं उसका
जो गया तो
फिर वापस नहीं आया
ये उसका पागलपन नहीं
उसकी आत्मा की आवाज है
जो बरबस ही दरवाजे की और
ढकेल देती है उसे
इन्तजार है उसे उस पल का
जो उसे टूटने से बचा ले
ये उसका पुत्र प्रेम है जिसने
उसने अंदर तक विव्हल किया है
वो गया था कहकर
जीतूंगा और वापस लौटूंगा
सियाचिन की वादियों में
लड़ा वो वीर बनकर
दुश्मनों को पस्त कर
फिर निढाल हो शांत हो गया
पहन तिरंगा कफ़न पर
मातृभूमि पर न्योछावर
परमवीर बन गया वह ….