Author: कविता बहार

  • मातृभूमि- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मातृभूमि- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    उसकी आँखों का पानी
    सूख चुका था

    उसकी मरमरी बाहें
    आज भी
    इंतजार कर रही हैं उसका

    जो गया तो
    फिर वापस नहीं आया

    ये उसका पागलपन नहीं

    उसकी आत्मा की आवाज है

    जो बरबस ही दरवाजे की और
    ढकेल देती है उसे

    इन्तजार है उसे उस पल का

    जो उसे टूटने से बचा ले

    ये उसका पुत्र प्रेम है जिसने

    उसने अंदर तक विव्हल किया है

    वो गया था कहकर

    जीतूंगा और वापस लौटूंगा

    सियाचिन की वादियों में

    लड़ा वो वीर बनकर

    दुश्मनों को पस्त कर

    फिर निढाल हो शांत हो गया

    पहन तिरंगा कफ़न पर

    मातृभूमि पर न्योछावर

    परमवीर बन गया वह ….

  • कवि पंख हुए विस्तृत – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    kavita

    कवि पंख हुए विस्तृत – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कवि पंख हुए विस्तृत
    हुए विस्तृत हुए व्यापक
    सोच बदली बदले नियम
    विषय हुए विस्तृत हुए व्यापक

    करवटें बदलती सभ्यता
    करवटें बदलता समाज
    विकृत होती मानसिकता
    उबाल पर काम का प्रभाव

    संस्कार उभरे रूढ़ीवादी विचार बन
    संस्कृति उभरी मनोरंजन का स्वर बन
    सद्विचारों का प्रभाव दिख रहा
    पनप रहा मनचलापन

    अजीब सा बहाव है
    पसार रहा पाँव है
    पुण्य छीण हो रहे
    विलासिता का भाव है

    धर्म पर अधर्म की मुहर
    सत्य आज असहाय है
    चीख – चीख पुकारती
    मानवता आज है

    फूलों से खुशबू खो रही
    अंगडाई आंसू – आंसू रो रही
    नेत्र हुए विकराल हैं
    सतीत्व को न छाँव है

    देवालय शून्य में झांकते
    मानव इधर उधर भागते
    अस्तित्व का पता नहीं
    कि राह किधर है कहाँ

    कि पुण्यात्मा कहैं किसे
    कि मस्तक चरण धरें किसे
    कि मोड़ जीवन का है ये कैसा
    कि अब गिरे कि कब गिरे

    शून्य में हम झांकते
    रोशन दीये के तले
    कि कैसा ये बहाव है
    न कोई आसपास है

    कि अंत का पता नहीं
    कि अगले पल कि खबर नहीं
    फिर भी मोहपाश है
    कि टूटता नहीं कि छूटता नहीं

    नव विचार कर रहे विव्हल
    कि चूर – चूर ये जवानियाँ
    प्रयोग दर प्रयोग बढ़
    मिटा रहे निशानियां

    कि हाथ तेरे कुछ न तेरे है
    कि हाथ कुछ न मेरे है
    कि हम भागते तुम भागते
    कि हम भागते बस भागते

    कि सुकून न मिल रहा यहाँ
    क्या चैन मिलेगा वहाँ
    कि दो पल को रुक सकूँ खुदा
    कि खुद की खोज कर सकूं

    कि राह दिखलाना मुझे
    कि पनाह में अपनी तू ले मुझे
    कि मै गिरूं तो तू संभाल ले
    हो सके तो तू करार दे

    कवि पंख हुए विस्तृत
    हुए विस्तृत हुए व्यापक

  • फागुन मास पर कविता

    फागुन में वर्षा होती है, बारिश की बूँदें वातावरण को स्वच्छ कर देती हैं तथा पूरा वातावरण सुंदर प्रतीत होता है। आसमान अत्यंत साफ़ सुथरा लगता है, प्रकृति में चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली होती है, वातावरण शीतल तथा शांत हो जाता है।

    महाशिवरात्रि (Maha Shivratri), विजया एकादशी, होलिका दहन (Holika Dahan) आदि कई प्रमुख व्रत-त्योहार फाल्गुन माह में ही मनाए जाते हैं. कहा जा सकता है कि होली के पर्व के साथ ही एक सौर वर्ष का समापन होता है. सौर धार्मिक कैलेंडर में, फाल्गुन का महीना सूर्य के मीन राशि में प्रवेश के साथ शुरू होता है.

    फागुन मास पर कविता

    falgun mahina
    फागुन महिना पर हिंदी कविता

    फागुन का मास।
    रसिकों की आस।।
    बासंती वास।
    लगती है खास।।

    होली का रंग।
    बाजै मृदु चंग।।
    घुटती है भंग।
    यारों का संग।।

    त्यज मन का मैल।
    टोली के गैल।।
    होली लो खेल।
    ये सुख की बेल।।

    पावन त्योहार।
    रंगों की धार।।
    सुख की बौछार।
    दे खुशी अपार।।


    वासुदेव अग्रवाल नमन

  • मनोज्ञा छंद “होली” – बासुदेव अग्रवाल

    मनोज्ञा छंद “होली” – बासुदेव अग्रवाल

    मनोज्ञा छंद "होली" - बासुदेव अग्रवाल
    holi

    भर सनेह रोली।
    बहुत आँख रो ली।।
    सजन आज होली।
    व्यथित खूब हो ली।।

    मधुर फाग आया।
    पर न अल्प भाया।।
    कछु न रंग खेलूँ।
    विरह पीड़ झेलूँ।।

    यह बसंत न्यारी।
    हरित आभ प्यारी।।
    प्रकृति भी सुहायी।
    नव उमंग छायी।।

    पर मुझे न चैना।
    कटत ये न रैना।।
    सजन याद आये।
    न कुछ और भाये।।

    विकट ये बिमारी।
    मन अधीर भारी।।
    सुख समस्त छीना।
    अति कठोर जीना।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • २२ मार्च विश्व जल दिवस – प्रिया शर्मा

    विश्व जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना है। विश्व जल दिवस  पर कविता बहार की एक कविता –

    जल पर कविता
    22 मार्च विश्व जल दिवस 22 March World Water Day

    पानी का महत्व

    पानी कहता-पानी कहता, मुझे बचाओ अब मुझे बचाओ,

    बहता पानी यह भी कहता, बेकार ना मुझे बहाओ।

    पानी को यूँ व्यर्थ बहाना, नहीं है अच्छी बात,

    बूँद बूँद से गागर भरती , ये कैसे समझाऊँ आज।

    अपने गिरते स्तर को देखकर, कहता अब ये सलिल,

    पानी को बचाइये , इसका स्तर बढाइये , सब साथ हिलमिल।

    कुछ कीमत में भी मिल जाता हूँ, सोचो कुछ तो अब,

    आगे क्या हो जायेगी कीमत, ये सोचोगे कब।

    पॉलीथिन का उपयोग न करें, न इसे जलाइये ।

    वातावरण प्रदूषण मुक्त रखें, पानी पीने योग्य बनाइये ।

    हरियाली भी नहीं बची तो पानी कहाँ से पाओगे,

    हर व्यक्ति एक वृक्ष लगाए तो जीवन सुखी बनाओगे।

    भारत में ही कुछ प्रतिशत बचा है पीने योग्य पानी,

    समय रहते संभल जाओ, नहीं तो आगामी पीढ़ी को याद आएगी नानी।

    संत रहीम ने भी क्या खूब लिखा –

    रहिमन पानी राखिये “बिन पानी सब सून”

    पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष , चून ।

    -प्रिया शर्मा