Author: कविता बहार

  • चादर जितने पांव पसारो – राकेश सक्सेना

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    चादर जितने पांव पसारो – राकेश सक्सेना

    अभिलाषा और ईर्श्या में,
    रात-दिन सा अंतर जानो तुम।
    अभिलाषा मजबूत रखो,
    ईर्श्या से दिल ना जलाओ तुम।।

    चादर जितने पांव पसारो,
    पांव अपने ना कटाओ तुम।।
    अपनी मेहनत से चांद पकड़ो,
    उसे नीचे ना गिराओ तुम।

    “उनके घर में नई कार है,
    मेरा स्कूटर बिल्कुल बेकार है”।
    “एयर कंडीशंड घर है उनका,
    अपना कूलर, पंखा भंगार है”।।

    “उनका घर माॅर्डन स्टाईल का,
    अपना पुराना खंडहर सा है”।
    “वो पार्लर, किटीपार्टी जाती,
    मेरा जीवन ही बेकार है”।।

    ये बातें जिस घर में होती,
    वहां अज्ञान अंधेरा है।
    चादर जितने पांव पसारो,
    वहीं शांति का डेरा है।।

    राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान
    9928305806

  • मुझे तेरे करम का एहसास हो – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मुझे तेरे करम का एहसास हो – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मुझे तेरे करम का एहसास हो
    तू यहीं कहीं मेरे आसपास हो

    थक जाऊं तो सहारा देना
    गिरने जो लगूं तो संभाल लेना

    तेरे रहमत तेरे करम का साया हो
    या मै यहाँ रहूँ या वहाँ रहूँ

    किस्सा ए जिंदगी सुकून से चले
    हर वक्त तेरा नाम मेरी जुबान पे रहे

    कि जागूं तो बसर रह जुबान पे मेरी
    और जुस्तजू तेरी ख्वाब में भी बरकरार रहे

    तूने खिलाया है सभी को गोदी में लेकर
    तेरा ये प्यार हम पर भी बरकरार रहे

    एहसास -ए -करम हम पर ताउम्र रहे
    हमेशा तू यहीं कहीं मेरे आसपास रहे

    मंजिल मेरे खुदा तू मुझे नज़र करना
    तेरे करम का चर्चा हो गली – गली

    इतना रहम हम पर तासहर करना
    मुझे तेरे करम का एहसास हो

  • मैंने माँ से पूछा? वंशिका यादव

    माँ बेटी

    आज मैने माँ से पूछा कि क्या आप बिस्तर लगाते वक्त अब भी याद करती हैं?तो माँ ने कहा मेरे बच्चे जल्दी घर आजा मुझे तेरी याद आती है।

    आज मेरी आँखे नम थी, और गला कुछ रुंधा सा था,क्योंकि मैं आज रोयी थी।तब शाम को मैने मम्मी को फोन किया और पूछा कि आप कैसे हो?माँ का अगला सवाल मुझसे था, चल तु बता तु रोयी क्यों है?
    मैंने माँ से पूछा? गद्य,वंशिका यादव

  • एक ही प्रश्न – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    एक ही प्रश्न – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मै हर एक से
    पूछता हूँ
    केवल एक ही प्रश्न
    क्या तुमको पता है
    इंसानियत का पता ठिकाना
    मानवता के घर का पता
    नेकी के बादलों में उड़ते
    उस परिंदे के
    आशियाँ की खबर

    जवाब यही मिलता
    इंसानियत मानव के दिल में
    पलती है
    इस उत्तर ने
    मुझे कोई विशेष
    संतुष्टि प्रदान नहीं की
    मै और ज्यादा चिंचित हो गया
    और स्वयं ही इसका
    उत्तर खोजने लगा

    मैंने पाया
    कि जो मानव
    अपनी कुप्रवत्तियों
    पर अंकुश नहीं लगा पाता
    उसके दिल में इंसानियत
    किस तरह पल और बढ़ सकती है

    विचारों की श्रृंखला
    और मुखरित हुई

    एक और विचार ने
    जन्म लिया
    कि यह मानव जो
    मानव शरीर के
    रंगों का भेद करता है
    जातिवाद, धर्मवाद
    को अपनी अनैतिक इच्छाओं
    की पूर्ति के लिए
    आतंकवाद के नाम से
    मोहरे की तरह
    इस्तेमाल करता है
    उसके दिल में
    इंसानियत किस तरह पल
    और बढ़ सकती है

    चिंतन प्रवृति ने
    फिर जोर मारा
    तो कुछ और ज्यादा सूत्र
    हाथ आये
    कि लोगों की
    तरक्की की राह में रोड़ा
    बनने वाला
    यह मानव
    शारीरिक व मानसिक हिंसा
    में लिप्त मानव
    हर क्षण
    नैतिक मूल्यों का
    ह्रास करता मानव
    विलासितापूर्ण
    वैभव्य प्राप्ति
    में लिप्त मानव
    कामपूर्ण प्रवृत्ति के चलते
    चरित्र खोता मानव
    शिक्षक से भक्षक बनता मानव
    गुरु से गुरुघंटाल
    होता मानव
    मर्यादाओं व सीमाओं को तोड़ता मानव
    मानव से मानव को
    अलग करता मानव
    अहं में जीता मानव
    हर पल गिरता मानव
    और क्या कहूँ
    और क्या लिखूं
    ये दिल को कचोटने वाली
    क्रियाएँ
    आत्मा को झिंझोड़ने वाली घटनाएं
    इन घटनाओं में लिप्त मानव
    के हृदय में इंसानियत न
    तो पल सकती है और न ही
    बढ़ सकती है
    ऐसे मानव से इंसानियत कोसों
    दूर भागती है
    समझ नहीं आता
    क्या होगा इस मानव का
    मानव रुपी इस दानव का …………………….

  • प्रेरणा- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    kavita

    प्रेरणा- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मै
    किस्सों को
    प्रेरणा का
    स्रोत
    नहीं मानता

    मै झांकता हूँ
    जिंदगी में उनकी
    जिन्हें
    प्रेरणा स्रोत बनने में
    उस स्तर
    तक पहुँचने में
    अपना
    सम्पूर्ण जीवन
    सर्वस्व समर्पित
    करना पड़ा
    जिनका जीवन
    हर क्षण
    हर पल की
    मुसीबतों
    मुश्किलों
    में भी
    स्वयं को
    संभाल

    गिरने की प्रवृत्ति
    से दूर
    डगमगाने की
    प्रवृत्ति
    से दूर
    संभलना
    और
    दोबारा
    बुलंद हौसलों
    का आसरा
    लेकर
    अग्रसर होना
    हर पल
    एक आदर्श
    स्थापित करना

    प्रेरणा
    स्रोत बन उभरना
    पीछे
    मुड़कर देखना
    इनकी नियति
    नहीं होती

    ये कायम करते हैं
    नित नई – नई मिसालें
    नित नए – नए
    आदर्श
    ये रुकते नहीं
    ये पथ प्रदर्शक
    बन
    स्थापित करते हैं
    नए आयाम
    वे करते
    हैं
    आदर्शों का विस्तार

    संकोच और संकुचन में
    इनका विश्वास नहीं
    ये निश्चल मन से
    अपनी
    इच्छाओं का
    गला घोंट
    उन पर
    अंकुश लगा
    स्वयं को
    हर परिस्थिति
    से
    जूझने के लिए
    करते हैं तैयार

    ये मानसिक, शारीरिक
    सामाजिक व धार्मिक
    तौर पर
    स्वयं को परिपक्व कर
    बढते हैं
    अग्रसर होते हैं
    तब तक
    जब तक
    मंजिल
    इनके क़दमों का
    निशाँ नहीं हो जाती