Author: कविता बहार

  • कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना कहाँ तमाम करूँ – कविता – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    kavita

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    टूटा था दिल वहां से, या संभला था दिल जहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    संवरे थे मेरे सपने वहां से, या बिखरे थे वहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    जुड़ी थी यादें वहां से, या टूटे थे रिश्ते जहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    जब रोशन हुआ था दिल वहां से, या तनहा हुआ था जहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    चंद कदम चले थे वहां से, या जुदा हो गए थे जहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    रोशन हुआ था मुहब्बत का कारवाँ वहां से, या बिखरे थे सपने वहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    जब पहली बार हम मिले थे वहां से, या अंतिम दीदार हुए थे वहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    जब रोशन हुई थी कलम वहां से, या उस खुदा की इनायत का कारवाँ रोशन हुआ वहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

  • मुझे वो अपना गुजरा ज़माना याद आया – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मुझे वो अपना गुजरा ज़माना याद आया

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मुझे वो अपना गुज़रा ज़माना याद आया

    वो बचपन की यादें, वो रूठना मनाना याद आया

    बेरों की वो झुरमुट , वो नदी का किनारा

    काँधे पर स्कूल का बस्ता, वो लड़ना लड़ाना याद आया

    खिल जाती थीं बांछें , जब जेब में होती थी चवन्नी

    वो मन्नू हलवाई की दूकान , वो कुल्फी वाला याद आया

    ठाकुर साहब के बाग़ से , छुपकर चुराए वो आम

    बापू की डांट डपट, माँ का मुझको बचाना याद आया

    गिल्ली डंडे का वो खेल, कंचे बंटों की खनखन

    कभी हारकर रोना , कभी जीतकर खुश होना याद आया

    त्यौहार के आने की ख़ुशी, मेले की रौनक

    वो गुड्डे गाड़ियों से सजा बाज़ार, वो टिकटिक करता बन्दर याद आया

    संतू की चाची का पान खाकर, यहाँ वहां पिचपिच करना

    मंदिर की घंटी का स्वर , वो मंदिर का प्रसाद याद आया

    छुपान – छुपाई का वो खेल, कैरम पर नाचती गोटियाँ

    वो पढ़ाई को लेकर आलस, वो फेल होते होते बचना याद आया

  • शिव की महिमा

    प्रस्तुत कविता शिव की महिमा भगवान शिव पर आधारित है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है।

    शिव की महिमा


    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तू तो करे नंन्दी की सवारी।
    मेरे भोले भण्डारी, तू तो है एक विषधारी।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तेरी महिमा है जग में सबसे न्यारी।
    मेरे भोले भण्डारी, तुझे तो हैं भांग सबसे प्यारी।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तू तो पी जाये विष का प्याला।
    तेरा जग से है नाता सबसे निराला।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तेरी भांग घोंघट-घोंघट हाथ में ठेक पड़ गयी।
    अब तो तेरी भांग मुझे भी चढ़ गयी।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, संसार का हर प्राणीे तेरे आगे हो जाये नतमस्तक।
    तेरे द्वार से खाली हाथ न गया कोई आज तक।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’

    ओ मेेरे भोले, कैलाश पर बैठे तुम लगते हो निराले।
    इस धरा पर तुम ही हो सबके रखवाले।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तेरी भंाग घोंघट-घांेघट हाथों में पड गये छाले।
    मेरे भोले भण्डारी तुम तो हो गये हो विष के प्याले।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तुम ही हो मेरे अन्तर्यामी।
    तुम ही हो समस्त जगत के स्वामी।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तुम ही हो जग के पालनहार।
    भोले बस तेरा ही मैं ध्यान करू बारम्बार।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तेरी बारात के हैं अजब ठाट निराले।
    जिसमें हर कोई बोले बम बम बोले।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तेरी शरण में लोटा भरकर दूध जो चढावे।
    भोले वो तो तेरी सासों में ही ठहर जावे।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, इक कन्या कुँवारी जो तेरे सौलह सोमवार व्रत रख लियेे।
    उसको तो तेरी असीम कृपा से अच्छा वर मिल जाये।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तुम तो है पशु-पक्षियों के नाथ।
    तुम जन-जन के हृदय मे बसे हो मेरे कैलाशनाथ।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’


    श्रीमती मोनिका वर्मा
    जिला-आगरा, उत्तर प्रदेश

  • गणपति वंदना , प्रिया शर्मा

    गणेश
    गणपति

    गणपति वंदना

    हे गौरीसुत ओ गणपति,

    सबको अब दे दो सुमति।

    हे शंकरसुवन हे गणराज,

    घर-घर कराओ मंगल काज।।

    हे लम्बोदर ओ महाकाय,

    दूर करो गर संकट आये।

    हे विनायक हे गजानन,

    प्रेम बरसे हर घर आँगन।।

    हे गौरी नंदन चार भुजाधारी,

    रहे आसन्न सदा मूषक की सवारी।

    हे बुद्धि विधाता हे शिवनंदन,

    प्रथम पूज्य बने, कर मात-पितु वंदन।।

    हे गणेश ओ विघ्न विनाशक,

    विघ्न हरो, हों हर्षित लोचन।

    हे मंगलमूर्ति हे बुद्धि राज,

    पाप हरो सबके महाराज।।

    गज का रूप धरे सलोना,

    पुलकित करे हर मन का कोना।

    लम्बोदर है अति लुभावना,

    पूर्ण करें हर मनोकामना।।

    -प्रिया शर्मा

  • बारिश में माँ- प्रिया शर्मा

    बारिश में माँ- प्रिया शर्मा

    बारिश में माँ

    बारिश में माँ- प्रिया शर्मा

    बारिश जब-जब तुम आती हो,
    माँ को बहुत लुभाती हो,
    सूरज चाचा साथ में जब हों,
    इन्द्रधनुष के रंग बिखराती हो।

    बारिश का आना और उसमें नहाना,
    मम्मी का डाँटना और शोर मचाना,
    घर के अन्दर घसीट कर ले जाना,
    सिर पौंछते हुये कहना–
    बन्द करो अब मुझे सताना।

    बारिश का सुबह-सवेरे आना,
    स्कूल की छुट्टी का बहाना मिल जाना,
    बारिश में खेलना और मस्ती मारना,
    थक कर माँ के आँचल में सिमट जाना।

    घर के लोगों का अन्दर-बाहर होना,
    मम्मी का चिल्लाना–
    गन्दे पैर अन्दर मत लाना,
    पापा का ऑफिस से आना
    और कहना–
    गरमागरम पकौड़े हों और
    मीठी चाय बना लाना।

    घर के कामों से
    एक दिन फ़ुर्सत पाकर,
    माँ ने सोचा आज घूमकर आते हैं,
    कैसा पानी फिरा उम्मीदों पर माँ की,
    जब बारिश के साथ बादल
    घुमड़-घुमड़ छा जाते हैं!

    -प्रिया शर्मा