मेरे आंगन में – दिनेश चंद्र प्रसाद “दीनेश”
“मेरे आंगन में “ होठ तेरे जैसे, दो कुसुम खिले;यौवन के कानन में ।आंखें तेरी जैसी, दो झील हैं गहरी;रूप के मधुबन में ।गाल हैं तेरे चिकने जैसे,दो नव किसलय; निकले उपवन में।बिंदिया की चमक है जैसे, इंदु हँसे;नील गगन…