Author: कविता बहार

  • विनाश की ओर कदम

    विनाश की ओर कदम

    नदी ताल में  कम  हो  रहा  जल
    और हम पानी यूँ ही बहा  रहे हैं।
    ग्लेशियर पिघल रहे  और  समुन्द्र
    तल   यूँ ही  बढ़ते  ही जा रहे  हैं।।
    काट कर सारे वन  कंक्रीट के कई
    जंगल  बसा    दिये    विकास   ने।
    अनायस ही विनाश की ओर कदम
    दुनिया  के  चले  ही  जा  रहे   हैं ।।
    पॉलीथिन के  ढेर  पर  बैठ  कर हम
    पॉलीथिन हटाओ का नारा दे रहे हैं।
    प्रक्रति का  शोषण कर   के  सुनामी
    भूकंप  का  अभिशाप   ले   रहे  हैं ।।
    पर्यवरण प्रदूषित हो रहा है  दिन रात
    हमारी आधुनिक संस्कृति के कारण।
    भूस्खलन,भीषणगर्मी,बाढ़,ओलावृष्टि
    की नाव बदले में  आज हम खे रहे हैं।।
    ओज़ोन लेयर में छेद,कार्बन उत्सर्जन
    अंधाधुंध दोहन का ही दुष्परिणाम है।
    वृक्षों की कटाई  बन  गया  आजकल
    विकास  प्रगति   का   दूसरा  नाम  है।।
    हरियाली को  समाप्त करने  की  बहुत
    बडी  कीमत चुका रही   है  ये  दुनिया।
    इसी कारण ऋतुचक्र,वर्षाचक्र का नित
    असुंतलन आज  हो  गया  आम  है ।।
    सोचें  क्या दे  कर  जायेंगे  हम   अपनी
      अगली     पीढ़ी    को   विरासत   में ।
    शुद्ध जल और वायु  को ही   कैद  कर
    दिया है जीवन  शैली की  हिरासत में।।
    जानता  नहीं   आदमी   कि   कुल्हाड़ी
    पेड पर  नहीं  पाँव   पर  चल   रही  है।
    प्रकृति  नहीं  सम्पूर्ण  मानवता  ही नष्ट
    हो जायेगी इस दानव सी हिफाज़त में।।
    रचयिता
    एस के कपूर श्री हंस
    बरेली
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • कर डरेन हम ठुक-ठुक ले

    कर डरेन हम ठुक- ठुक ले

    पुरखा के रोपे रूख राई
    कर डरेन हम ठुक-ठुक  ले.. ……
    नोहर होगे तेंदू चार बर..
    जिवरा कईसे करे मुच-मुच ले…

    ताते तात के जेवन जेवईया ,
    अब ताते तात हवा खावत हन ..
    अपन सुवारथ के चक्कर म,
    रूख राई काट के लावत हन.
    कटकट- कटकट करत डोंगरी …
    कर डरेन हम बूच -बूच ले …
    कर डरेन हम ठुक -ठुक ले…

    बड़े-बड़े मंजिल कारखाना ,
    आनी बानी अब गढ़हत हे!
    सुरसा कस जनसंख्या देख ले,
    दिनो दिन ये बढ़हत हे ।।
    जंगल ले मंगल़़ दुुुरिहागे..
    जिनगी कईसे करे मुच- मुच ले …
    कर डरेन हम ठुक ठुक ले…

    बिरान न होवए अब ये भुइया..
    हमला बिचार करना हे ..
    खोज- खोज के खाली जगह म..
    रूख राई लगा के भरना हे ..
    सरग बरोबर ये भुईया ल ..
    सिंगार करन अब लुक – लुक ले…
    कर डरेन हम ठुक ठुक ले….

    दूजराम साहू अनन्य
    भरदाकला (खैरागढ़)

    ले

  • धरती के श्रृंगार

    धरती के श्रृंगार

    वृक्ष हमारी प्राकृतिक सम्पदा,
    धरती के श्रृंगार हैं!
    प्राणवायु देते हैं हमको,
    ऐसे परम उदार हैं!!
    वृक्ष हमें देते हैं ईंधन,
    और रसीले फल हैं देते!
    बचाते मिट्टी के कटाव को,
    वर्षा पर हैं नियंत्रण करते!!
    वृक्ष औषधियाँ प्रदान कर,
    जीवन सम्भव बनाते हैं!
    औरों की खातिर जीना हमको,
    परमार्थ भाव सिखलाते हैं!!
    वृक्ष सदा दे करके छाया,
    पथिकों को विश्राम हैं देते!
    मिले इनसे इमारती लकडियाँ,
    बदले में नही कुछ लेते!!
    वृक्ष हैं जीवन का आधार,
    करते दूर प्रदूषण हैं!
    वन्य जीवों के आश्रयदाता,
    इस धरा के आभूषण हैं!!
    वृक्ष लगायें खूब यदि,
    चाहें भविष्य की सुरक्षा!
    फिर से हरियाली छायेगी,
    होगी पर्यावरण की रक्षा!!
    कंचन कृतिका
    गोण्डा, उ० प्र०
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • वृक्ष कोई मत काटे

    वृक्ष कोई मत काटे

    काटे जब हम पेड़ को,कैसे पावे छाँव।
    कब्र दिखे अपनी धरा,उजड़े उजड़े गाँव।।
    उजड़े उजड़े गाँव,दूर हरियाली भागे।
    पर्यावरण खराब,देख मानव कब जागे।।
    उपवन को मत काट,कमी को हम मिल पाटे।
    ऑक्सीजन से जान,वृक्ष कोई मत काटे।।

    देते ठंडक जो हमे,करते औषधि दान।
    आम बेल फल सेब खा,भावे खूब बगान।।
    भावे खूब बगान,रबर भी हमको मिलता।
    चले हवा जब जोर,लचक कर तरु है हिलता।।
    पेड़ो से है साँस,जीव सब के सब लेते
    दफना कर फल बीज,वादियाँ फिर रख देते।।

    पानी बरसे मेघ से,नीम आम हो मेड़।
    स्रोत मिले जब नीर का,लगे भूमि में पेड़।।
    लगे भूमि में पेड़,धार पानी बढ़ जाए।
    पानी बोतल दाम,समस्या दूर हटाए।।
    शादी षष्ठी होय,वृक्ष रोपे सब ज्ञानी।
    संकट काहे आय,बचा ले मिलकर पानी।।

    राजकिशोर धिरही
    तिलई,जांजगीर
    छत्तीसगढ़
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • विश्व पर्यावरण दिवस पर दोहे

    विश्व पर्यावरण दिवस पर दोहे

    विश्व पर्यावरण दिवस पर दोहे

    save nature

    सरिता अविरल बह रही, पावन निर्मल धार ।
    मूक बनी अविचल चले, सहती रहती वार ।।

    हरी-भरी वसुधा रहे, बहे स्वच्छ जलधार ।
    बनी रहे जल शुद्धता, धुलते सकल विकार ।।

    नदियाँ है संजीवनी, रखलो इनको साफ ।
    नदियाँ गंदी जो हुई, नहीं करेंगी माफ ।।

    छतरी है आकाश की, ओजोन बना ताज ।
    उड़ा नहीं सी एफ सी, यही निवेदन आज ।।

    करो प्रदूषित जल नहीं, ये जीवन का अंग ।
    निर्मल पावन स्वच्छता, जो डालो वो रंग ।।

    अनिता मंदिलवार सपना
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़