Author: कविता बहार

  • बासंतिक नवरात्रि की आई मधुर बहार

    बासंतिक नवरात्रि की आई मधुर बहार

    बासंतिक नवरात्रि की आई मधुर बहार
    आह्वान तेरा है मेरी मां आजा मेरे द्वार
    मंदिर चौकी कलश सज गए
    दर्शन दे माता दुर्गे होकर सिंह सवार।
    नौ दिन हैं नवरात्रि के नवरूप तेरे अपार
    लाल चुनर साड़ी सिंदूर से करुं तेरा श्रृंगार
    संकटहरिणी मंगलकरणी नवदुर्गे
    खुश हो झोली में भर दे तू आशीष हजार।
    हाथ जोड़ विनती करूं करो भक्ति स्वीकार
    धूप दीप नैवेद्य से माँ वंदन है बारम्बार
    शत्रुसंहारिणी अत्याचारविनाशिनी
    महिमा जग में है तेरी शाश्वत अपरंपार।
    शैलपुत्री के रूप में रहती तू ऊँचे पहाड़
    ब्रह्मचारिणी मां चंद्रघंटा रूप तेरा रसताल
    कूष्मांडा स्कंदमाता जगदंबा छविरूप
    कात्यायनी कालरात्रि रूप तेरा विकराल।
    महागौरी सिद्धिदात्री मां तू दयानिधान
    पापनाशिनी मां अम्बे लाती नया विहान
    खड्ग खप्पर संग मुंडमाल गले में
    सब देवों में माँ मेरी तू है श्रेष्ठ महान।
    जब जब  भक्तों पर संकट आता
    मां  धारण करती तू रूप अनेक
    शक्तिस्वरुपा जगतजननी जगदम्बे
    इस धरती की  तू पावन माँ एक।
    नौ दिन तेरा पाठ करूं महके मेरा घरबार
    दुखहारिणी मां खुशी से भर दे मेरा भंडार
    तेरे आवन की खुशी से नैनों में अश्रुधार
    कृपादृष्टि हो मां तेरी सुखी रहे मेरा परिवार।

    कुसुम लता पुंडोरा
    आर के पुरम
    नई दिल्ली
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  • चुनाव का बोलबाला

    चुनाव का बोलबाला

    हर  गली   में   बोलबाला  है।
    अब  वक्त  बदलने  वाला  है।।
    जो चुनाव नजदीक आ गया,
    बहता   दारू  का   नाला  है।।
    उन्हें  वोट  चाहिए  हर  घर  से,
    हर  महिला  इनकी  खाला  है।।
    साम, दाम, दण्ड, भेद अपनाए,
    सच  की  छाती  पर  छाला  है।।
    झुग्गी  में   नेता   रोटी   खाए,
    समझ  लो गड़बड़  झाला  है।।
    कल  चाहे  ये  बलात्कार   करें,
    आज  बहन  हर  एक  बाला है।।
    ये  इतना  मीठा  बोल  रहे   हैं,
    जरूर   दाल   में   काला   है।।
    सिल्ला ऐसा नशा है सियासत,
    नहीं   कोई   बचने   वाला   है।।
    -विनोद सिल्ला
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  • कालचक्र गतिशील निरन्तर होता नहीं विराम

    कालचक्र गतिशील निरन्तर होता नहीं विराम

    कालचक्र गतिशील निरन्तर
                          होता नहीं विराम,
    दुख    के   पर्वत,नदिया,नाले
                   सुख का अल्प विराम।
    अब तक मुझको समझ न आया
                       इस जगती का राग
    रास       न आयी   इसकी  माया
                     कैसे    हो   अनुराग !
    शिथिल हुआ है तन ये जर्जर
                   मन भागे   अविराम
    दुख के पर्वत , नदिया , नाले ,
                 सुख का अल्प विराम।
    छायी है बस ग़म की बदली
                     आँसू का     संवाद
    साँसों    की   सरगम में गूँजे
               धड़कन का  अनुवाद।
    आपाधापी    अन्दर- बाहर
                   तनिक नहीं विश्राम ।
    दुख के पर्वत , नदिया ,नाले,
              सुख का अल्प विराम ।
    कालचक्र गतिशील निरन्तर
                   होता  नहीं विराम
    दुख के पर्वत, नदिया ,नाले
                 सुख का अल्प विराम ।
              नीलम सिंह 
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  • सरस्वती दाई तोर पइयां लागव ओ

    सरस्वती दाई तोर पइयां लागव ओ

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    सरस्वती दाई तोर पइयां लागव ओ।
    कंठ में बिराजे जेकर भाग जागय ओ।
    तोरे आसरा म नान्हे लइका पढ़ जाथे।
    बुद्धि पाके ज्ञानी कलाकार बन जाथे।
    मन ल भरमा के तंय,
    धार ल ठहरा के तंय।
    डहके डुबत नइयां लागय ओ।
    सरसती दाई ………
    बिनती हावय दाई सब ल ज्ञान म नौहादे।
    दुखिया ल सुख दे तंय पीरा बिसरादे
    अंतस में रम के तंय,
    अंजोरी कस बर के तंय।
    तीपत घाम घलो छइहां लागय ओ।
    सरसती दाई तोर पइयां लागव ओ।
    माथ म बिराजे ओकर भाग जागय ओ।
    नाम – तेरस कैवर्त्य ‘ऑसू’
    गांव – सोनाडुला, (बिलाईगढ़)
    जिला – बलौदाबाजार-भाटापारा (छ. ग.)
    मोबाइल 9399169503, 9165720460
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  • आया है चैत्र नवरात्र का त्योहार

    उगादी सृष्टि की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए नौ दिनों में मनाया जाता है, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने उगादी पर ब्रह्मांड का निर्माण शुरू किया था. त्योहार दुर्गा के नौ रूपों का जश्न मनाता है, और पहला दिन (चैत्र नवरात्रि) मानव जाति की शुरुआत का जश्न मनाने के लिए समर्पित है। चैत्र नवरात्र से सम्बंधित एक कविता

    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri
    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri

    आया है चैत्र नवरात्र का त्योहार

    आया है चैत्र नवरात्र का त्योहार,

    घर घर होगी घट स्थापना, मां दुर्गा नवरूप।
    सजे आज मंदिर सारे, जलें हैं दीप और जल रही धूप।।
    हो रही मां अम्बे हर्षित, फैला हैं उजियारा।
    मां का आशीर्वाद पाकर, धरती पर बचे नहीं कोई दुखियारा।।
    नव पंडाल लगे हैं, फूलों से जो सदा सजे हैं।
    भजन कीर्तन होते नित, मां की छत्रछाया में आ रहे खूब मजे हैं।।
    हवन हो रहे , माता को मनाना हैं।
    चैत्र नवरात्र में जीवन सफल बनाना हैं।।
    अखंड ज्योत से रोशन जीवन, मन पावन हो जाते।
    हाथ धरे जो मात भवानी, भवसागर तर जाते।।
    अन्न धन्न भंडार भरे मां, कृपा सदा बरसाती ।
    सिंह सवार मां दुर्गा, भक्ति रस में डुबाती।।
    कंजिका पूजन करके, चरण प्रक्षालित करने हैं।
    जीवन बन जायेगा सफल, मां चरणों में बहते स्नेह झरने हैं।।
    सुख समृद्धि की दाता माता भवानी, हम तो हैं खल कामी।
    स्वार्थलोलुपता और ईर्ष्या को आओं आज भुला दें।
    जीवन ज्योति घर आंगन गलियारे आओं आज जला दें।।


    धार्विक नमन, “शौर्य”,डिब्रूगढ़, असम,मोबाइल 09828108858
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