Author: कविता बहार

  • पाती सैनिक का पत्नी के नाम

    पाती सैनिक का पत्नी के नाम

    प्राण पिआरी दिल की रानी  | सदा सुहागिन होउ सयानी   ||
    आज तेरी चिट्ठी क्या आई   |  याद मुझे सबकी है सताई  ||
    वन्दवुं प्रथम बाबा अरु दादी | सीस झुकाऊँ मातु पिता जी  ||
    कैसे हैं सब चाचा चाची     | बडकी मैया बड़े पिता जी   ||
    गुडिया जैसी कैसी बहना    | आशिर्वाद उसे भी कहना    ||
    भैया भाभी चरण मनाऊँ    | सिया राम जैसे गुण गाऊँ   ||
    अनुज कहो कैसा है मेरा    | इहां उहां करता क्या फेरा    ||
    करे पढाई मन से कहना    | पढ लिख कर फौजी है बनना ||
    चन्ठ भतीजा और भतीजी   | कैसी है हम सबकी जीजी    ||
    प्यारा बेटा प्यारी बेटी      | कैसे गांव गली अरु खेती     ||
    बड़े दिनों में पाती पाया    | पढते पढते आंसू आया       ||
    मै लिखता सनेह से पाती   | भरि आई लिखते मम छाती  ||
    पिछली छुट्टी में घर आया  | खुशियाँ था भरपूर मनाया    ||
    माँ के हाथों का वो खाना  | आंचल से मुझको दुलराना    ||
    आती मुझको याद तिहारी  | भूल न पाऊँ तुमको प्यारी    ||
    हर पल रखती ध्यान हमारा | अपना सब कुछ मुझ पर वारा ||
    बात बात में वो इतराना    | मंद मंद तेरा मुसुकाना      ||
    छाई थी तुमपे हरियाली    | होठों पे सजती थी लाली     ||
    करती थी तुम नैन इशारे   | इक दूजे को सदा निहारे    ||
    जाने का दिन जब था आया | आँखों ने आंसू छलकाया    ||
    रो रो मेरी करी विदाई      | वारि बिना जिमि नदी सुहाई ||
    वच्चों का रोना बिलखाना   | बापू जल्दी वापस आना     ||
    गले लगाके मैया रोई      | बापू की आँखें थी खोई      ||
    यूनिट में था जब मै आया  | सबने मिलकर गले लगाया   ||
    मिलकर सबने बैग थे खोले  | भाभी ने क्या भेजा बोले    ||
    जो भी था सब मिलके खाए  | आपस में सब खूब हँसाए   ||
    और सुनाओ प्राण पिआरी    | लगे मोहिनी मोपर डारी    ||
    जो जो मन्नत बचा तिहारा   | अबकी पूरा करना सारा    ||
    छोटू का मुंडन है करना      | मन्नत का धागा है बधना  ||
    सीमा पे अभी युद्ध की हलचल | रक्षा में रहते हम प्रतिपल  ||
    सारा भारत परिवार हमारा    | मातृभूमि पे जीवन वारा    ||
    छुट्टी मिलते ही आऊँगा      | सबकी खुशियाँ लौटाऊंगा    ||
    छोटू का भी टैंक खिलौना    | बिटिया के गुडिया का गहना ||
    और सभी का लीस्ट बनाया  | तेरे झुमके को बनवाया     ||
    पत्र नही दिल इसको मानो  | बाँहों में मुझको हूँ जानो    ||
    कभी नही रोना तुम प्यारी  | हर पल है आशिष हमारी    ||
    पाती पढते पढते हलचल   | बाहर झांकी ठहर गया पल   ||
    सैनिक गाड़ी द्वारे आई    | सहम गई कुछ बोल न पाई  ||
    देखा इक शव उसमे आया  | जो है तिरंगे में लिपटाया    ||
    भीड़ बड़ी द्वारे है मोहन     | रुक गइ जैसे सबकी धड़कन ||
    पति पहिचानि के पिटहि छाती | पर धीरज मन में है लाती  ||
    अजर अमर  हो पिया हमारे   | जोर जोर जय हिंद पुकारे  ||
    अजर अमर  हो पिया हमारे   | जोर जोर जय हिंद पुकारे  ||
    मोहन श्रीवास्तव
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  • नारी पर सुन्दर कविता

    नारी पर सुन्दर कविता

    आँखों   से  आंसू   बहते  हैं
    पानी   पानी  है  नारी।
    दुनियां की नज़रों में बस इक
    करूण कहानी है नारी।।
    युगों  -युगों  से  जाने  कितने
    कितने अत्याचार सहे।
    अबला से  सबला तक आयी
    हार न  मानी  है  नारी।।
    ब्रह्मा   विष्णु   गोद   खिलाए
    नाच नचाया नटवर को।
    अनुसुइया   है   कौसल्या   है
    राधा   रानी   है   नारी।।
    एक  नही दो  नही  महज़ इस
    के  किरदार  अनेकों  हैं।
    कभी   लक्षमी   कभी  शारदे
    कभी  भवानी  है   नारी।
    महफ़िल  में  रौनक  है इससे
    गुलशन  में  बहार  है ये।।
    सारी   दुनियां   महा   समंदर
    और   रवानी   है  नारी।।
    ——-✍
    जयपाल प्रखर करुण
    रवानी–धारा, गति, प्रवाह
  • पीड़ाएँ

    पीड़ाएँ

    पीड़ाएँ

    पीड़ाएँ

    पिंजरा  चला  छोड़  कर , पंछी अनंत दूर ।
    यादें  ही  अब  शेष  हैं , परिजन  हैं  बेनूर ।।


    आँसू से रिश्ता घना ,  आँखों  ने ली जोड़ ।
    निर्मोही क्यों हो गये , ले गये सुख निचोड़ ।।
    गहनें सिसक रहे सजन , रूठे  सब श्रृंगार ।
    माथे की  ये  बिंदिया , पोंछ गये दिलदार ।।


    मन की बातें चुप हुई , तन की सुधि बिसराय ।
    अब  तो केवल  स्वप्न में ,साजन  आवे जाय ।।
    भूली  बिसरी  याद  को , रखी  तिजोरी  ढ़ाँक ।
    अब तो फक़त निहारते , सपने अनगिन फाँक ।।


    चलके तुम कर्तव्य पथ  , वतन शहीद कहाय ।
    मुश्किल जीवन सतह पर , कैसे ठहरा जाय ।।
    विधवा  शहीद  की बनी , गर्व करे  यह  देश ।
    धवल वस्त्र जो मिला , शुचिता  का गणवेश ।।
                   ~   रामनाथ साहू ” ननकी “
                        मुरलीडीह  (  छ. ग. )

  • सेना पर कविता

    सेना पर कविता

    नन्हे मुन्ने सैनिक

    सेना भारत वर्ष की, उत्तम और महान।
    इसके साहस की सदा, जग करता गुणगान।
    जग करता गुणगान, लड़े पूरे दमखम से।
    लेती रिपु की जान, खींच कर लाती बिल से।
    *और बढ़ाती *शान* , जीत बिन साँस न लेना।
    सर्व गुणों की खान, बनी बलशाली सेना।
    ताकत अपनी दें दिखा, दुश्मन को दें मात।
    ऐसी ठोकर दें उसे, नहीं करे फिर घात।
    नहीं करे फिर घात, छुड़ा दें उसके छक्के।
    आका उसके बाद, रहें बस हक्के-बक्के।
    पड़े पृष्ठ पर लात, करे फिर नजिन हिमाकत।
    दिखला दें औकात, प्रदर्शित कर के ताकत।।
    घुटने पर  है  आ  गया, बेढब   पाकिस्तान।
    चहुँमुख घातक चोट से, तोड़ दिया अभिमान।।
    तोड़ दिया अभिमान, दिखा कर ताकत अपनी।
    मेटें नाम-निशान, अकड़ चाहे हो जितनी।
    अभिनंदन है “शान” , लगे आतंकी मरने।
    सेना के अभियान, तोड़ते पाकी घुटने।।
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    प्रवीण त्रिपाठी, नई दिल्ली, 02 मार्च 2019
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  • मेरी कविता मां काली है

    मेरी कविता मां काली है

    मेरी कविता में करुण नही,
    क्रंदन कर अश्क बहायेगी ।
    श्रृंगार नहीं है कविता में ,
    जो गीत प्रेम के गायेगी ।
    सैनिक के साथ चला करती,
    यह भारत की रखवाली है ।
    शत्रु का शोणित पान करे ,
    मेरी कविता मां काली है ।
    प्रलय कर दे शत्रु दल में,
    वैरी को त्रास भयंकर है।
    जनहित को जो विषपान करे ,
    मेरी कविता शिव शंकर है।
    धर से मुंडों  को काट काट ,
    यह हाहाकार मचाती है ।
    शम्भू बन तीजा नयन खोल ,
    यह तांडव करती जाती है ।
    वंशज दिनकर की  है कविता,
    गंगा जमुना यह सिंधु है ।
    सब धर्मों का सम्मान करे पर,
    अन्तरमन से हिन्दू है ।
    भारत पर संकट आये तो ,
    अब्दुल हमीद हो जाती है ।
    बन भगत सिंह मिट्टी में यह ,
    बंदूकें बोती जाती है ।
    सैनिक संग बैठ मिराजों में,
    जब पी ओ के में जाती है ।
    पैंतालिस के बदले में कविता,
    तीन सौ नर मुंड गिराती है।
    मेरी कविता का शब्द शब्द,
    ह्रदय में ठक कर जाता है ।
    कविता रघुवर का धनुष बाण,
    रत्नाकर भी थर्राता है ।
    जो नहीं मिटायें घोर तिमिर ,
    वह रबि नहीं हो सकता ।
    लेखन तो मेरा ज्वाला है ,
    रति छवि नहीं हो सकता है।
    बलिदानों में श्रृंगार लिखे,
    वह कवि नहीं हो सकता है ।
    इसीलिये कविता मेरी यह,
    आग लगाने वाली है ।
    शत्रु का शोणित पान करे ,
    मेरी कविता मां काली है ।

                   रचयिता
           किशनू झा “तूफान”
             8370036068
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