देशप्रेम पर कविता-कन्हैया साहू अमित

देशप्रेम पर कविता

mera bharat mahan

देशप्रेम रग-रग बहे, भारत की जयकार कर।
रहो जहाँ में भी कहीं, देशभक्ति व्यवहार कर।

मातृभूमि मिट्टी नहीं, जन्मभूमि गृहग्राम यह।
स्वर्ग लोक से भी बड़ा, परम पुनित निजधाम यह।
जन्म लिया सौभाग्य से, अंतिम तन संस्कार कर।-1
रहो जहाँ में भी कहीं, देशभक्ति व्यवहार कर।

वीरभूमि पैदा हुआ, निर्भयता पहचान है।
धरती निजहित त्याग की, परंपरा बलिदान है।
देशराग रग-रग बहे, बस स्वदेश सत्कार कर।-2
रहो जहाँ में भी कहीं, देशभक्ति व्यवहार कर।

साँसें लेते हैं यहाँ, कर्म भेद फिर क्यों यहाँ,
खाते पीते हैं यहाँ, थाल छेद पर क्यों यहाँ।
देशप्रेम उर में नहीं, फिर उसको धिक्कार कर।
बेच दिया ईमान जो उनको तो दुत्कार कर।-3

रहो जहाँ में भी कहीं, देशभक्ति व्यवहार कर।
देशप्रेम रग-रग बहे, भारत की जयकार कर।

कन्हैया साहू ‘अमित’
भाटापारा छत्तीसगढ़

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