स्वदेशी पर कविता

स्वदेशी पर कविता

mera bharat mahan

इंग्लिस्तानी छोड़ सभ्यता,अपनाओ देशी
हिंदुस्तानी रहन-सहन हो,छोड़ो परदेशी।

वही खून फिर से दौड़े जो,भगतसिंह में था,
नहीं देश से बढ़कर दूजा, भाव हृदय में था,
प्रबल भावना देशभक्ति की,नेताजी जैसी,
इंग्लिस्तानी छोड़ सभ्यता,अपनाओ देशी
हिंदुस्तानी रहन-सहन हो,छोड़ो परदेशी।

वही रूप सौंदर्य वही हो,सोच वही जागे,
प्राणों से प्यारी भारत की,धरती ही लागे,
रानी लक्ष्मी रानी दुर्गा सुंदर थी कैसी,
इंग्लिस्तानी छोड़ सभ्यता,अपनाओ देशी
हिंदुस्तानी रहन-सहन हो,छोड़ो परदेशी।

गाँधीजी की राह अहिंसा,खादी पहनावा,
सच्चाई पे चलकर छोड़ा,झूठा बहकावा,
आने वाला कल सँवरे बस,डगर चुनी ऐसी,
इंग्लिस्तानी छोड़ सभ्यता,अपनाओ देशी
हिंदुस्तानी रहन-सहन हो,छोड़ो परदेशी।

वीर शिवाजी अरु प्रताप सा,बल छुप गया कहाँ,
आओ जिनकी संतानें थी,शेर समान यहाँ,
आँख उठाए जो भारत पर,ऐसी की तैसी,
इंग्लिस्तानी छोड़ सभ्यता,अपनाओ देशी
हिंदुस्तानी रहन-सहन हो,छोड़ो परदेशी।

#स्वरचित
*डॉ.(मानद) शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप*

(विधान – 26 मात्रा, 16,10 पर यति, अंत में गुरु l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l)

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

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  1. मनीभाई

    अपने सभ्यता के असीम श्रद्धा प्रकट करती कविता

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