ओ मोरे घनश्याम साँवरे

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ओ मोरे घनश्याम साँवरे

ओ मोरे घनश्याम साँवरे
ओ मोरे घनश्याम साँवरे
बिन दर्शन हम हो गए बावरे
बिन दर्शन हम हो गए बावरे
मोरे घनश्याम ओ मोरे श्याम
ओ मेरे….
दूखन लागे हमरे नैना
तुम बिन कान्हा अब नहीं चैना
दिन गुज़रे न कटती रैना
सुबह से हो गई अब तो शाम रे
ओ मोरे…..
गलियन गलियन ढूँढत आई
ओ मोरे मोहन रट है लगाई
बेचैनी तुमने है बढ़ाई
मुश्किल में हैं हमरे प्राण रे
ओ मोरे….
जब से तोरी प्रीत जगी है
‘चाहत’ वाली अगन लगी है
तन मन को बस लगन लगी है
जिव्या पे बस तुम्हरा नाम रे
ओ मोरे………


नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
झाँसी

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

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