आज की रात बड़ी शोख़ बड़ी नटखट है / गोपालदास नीरज

आज की रात बड़ी शोख़ बड़ी नटखट है कविता संग्रह आज की रात बड़ी शोख़ बड़ी नटखट है आज तो तेरे बिना नींद नहीं आएगी आज तो तेरे ही आने का यहाँ मौसम है आज तबियत न ख़यालों से बहल पाएगी। देख! वह छत पै उतर आई है सावन की घटा खेल खिलाड़ी से रही आँख मिचौनी बिजली दर पै हाथों में लिए...

जो कहा नही गया / अज्ञेय

जो कहा नही गया / अज्ञेय है,अभी कुछ जो कहा नहीं गया । उठी एक किरण, धायी, क्षितिज को नाप गई,सुख की स्मिति कसक भरी,निर्धन की नैन-कोरों में काँप गई,बच्चे ने किलक भरी, माँ की वह नस-नस में व्याप गई।अधूरी हो पर सहज थी अनुभूति :मेरी लाज मुझे साज बन ढाँप गई-फिर मुझ बेसबरे...

मैंने आहुति बन कर देखा / अज्ञेय

मैंने आहुति बन कर देखा / अज्ञेय मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने,मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू नंदन-कानन का फूल बने ?काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने ? मैं कब कहता हूँ मुझे युद्ध में कहीं...

उधार / अज्ञेय

उधार / अज्ञेय सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थीऔर एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी। मैनें धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधारचिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी?मैनें घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली दोगी—तिनके की नोक-भर?शंखपुष्पी से पूछा: उजास दोगी—किरण की...

नंदा देवी / अज्ञेय

नंदा देवी / अज्ञेय नंदा,बीस-तीस-पचास वर्षों मेंतुम्हारी वनराजियों की लुगदी बनाकरहम उस परअखबार छाप चुके होंगेतुम्हारे सन्नाटे को चीर रहे होंगेहमारे धुँधुआते शक्तिमान ट्रक,तुम्हारे झरने-सोते सूख चुके होंगेऔर तुम्हारी नदियाँला सकेंगी केवल शस्य-भक्षी बाढ़ेंया आँतों को...

धूल-भरा दिन / अज्ञेय

धूल-भरा दिन / अज्ञेय पृथ्वी तो पीडि़त थी कब से आज न जाने नभ क्यों रूठा,पीलेपन में लुटा, पिटा-सा मधु-सपना लगता है झूठा!मारुत में उद्देश्य नहीं है धूल छानता वह आता है,हरियाली के प्यासे जग पर शिथिल पांडु-पट छा जाता है। पर यह धूली, मन्त्र-स्पर्श से मेरे अंग-अंग को छू...