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छत्तीसगढ़ी रचना
प्रशिक्षण लेना हे संगी छत्तीसगढ़ी कविता
मोर ईस्कूल रहे सबले बढ़िया ।
यहां के लइका रहय सबले अगुआ ।
तेकर बर टाइम देना हे संगी।
प्रशिक्षण लेना हे संगी।प्रशिक्षण में सीख थन खेल खेल म विज्ञान ।…
तरिया घाट के गोठ छत्तीसगढ़ी कविता
( यह कविता कुछ ग्रामीण महिलाओं के स्वभाव को दर्शाती है जहाँ उनकी दिखावटीपन, आभूषण प्रियता, बातूनीपन और कुछ अनछुए पहलू को बताने की कोशिश की गई है ।)
जड़कल्ला के बेरा -छत्तीसगढ़ी कविता
आगे रे दीदी, आगे रे ददा, ऐ दे फेर जड़कल्ला के बेरा।
गोरसी म आगी तापो रे भइया , चारोखुँट लगा के घेरा॥रिंगीचिंगी पहिरके सूटर,नोनी बाबू ल फबे हे।
काम बूता म,मन…
पचदिनिया देवारी तिहार- पद्मा साहू “पर्वणी”
पचदिनिया देवारी तिहार- पद्मा साहू
आगे देवारी तिहार -छत्तीसगढ़ी कविता
आगे देवारी तिहार -छत्तीसगढ़ी कवितातिहार आगे ग , तिहार आगे जी,लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे।मन म खुशी अमागे ग,मन म खुशी अमागे!-->!-->!-->…
गरमी महीना छत्तीसगढ़ कविता
गरमी महीना छत्तीसगढ़ कविताकिंदर किंदर के आवथें बड़ेर,
"धुर्रा-माटी-पैरा-पान" सकेल।
खुसर जाय कुरिया कोती अन,
लकर-लकर फेरका ल धकेल।
हव! आगे ने दिन बिन-बूता पसीना…
शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता
सुधारू केहे-"कस रे मितान!तोला सफई के,नईये कछु भान।तोर आस-पास होवथे गंदगीइही च हावे सब्बो बीमारी के खान।"बुधारू कहे-"मय रेहेंव अनजान।लेवो पकड़त हावों मोरो दूनों…
प्राण जाए तो जाए : व्यंग्य रचना
प्राण जाए तो जाए : व्यंग्य रचना
प्राण जाए तो जाए , फेर दारू तो मिल जाए !
कइसे जल्दी जुगाड़ होही, कोई ये तो बताए !!अब्बड़ दिन म खुले हावे, दारू भट्टी के दुवारी…
पेरा ल काबर लेसत हो
पेरा ल काबर लेसत होतरसेल होथे पाती - पाती बर, येला काबरा नइ सोचत हो!
ये गाय गरुवा के चारा हरे जी , पेरा ल काबरा लेसत हो !!मनखे खाये के किसम-किसम के, गरुवा…