चार के चरचा
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चार दिन के जिनगी संगी
चार दिन के हवे जवानी
चारेच दिन तपबे संगी
फेर नि चलय मनमानी।
चारेच दिन के धन दौलत
चारेच दिन के कठौता।
चारेच दिन तप ले बाबू
फेर नइ मिलय मौका।।
चार भागित चार,होथे
बराबर गण सुन।
चार दिन के जिनगी म
चारो ठहर गुण।।
चार झन में चरबत्ता गोठ
चारो ठहर के मार।
चार झनके संग संगवारी
लेगही मरघट धार।।
चार झन के सुन, मन म गुण
कर सुघ्घर काम।
चार झन ल लेके चलबे
चलही तोर नाम।।
चार के चरचा/ डा.विजय कन्नौजे
- Post published:February 9, 2024
- Post category:छत्तीसगढ़ी रचना / हिंदी कविता
- Post author:कविता बहार
- Post last modified:February 9, 2024
- Reading time:1 mins read
Tags: #डाॅ विजय कुमार कन्नौजे
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कविता बहार
"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।