सामान्यतः लय को बताने के लिये छन्द शब्द का प्रयोग किया गया है। यह अंग्रेजी के ‘मीटर’ अथवा उर्दू-फ़ारसी के ‘रुक़न’ (अराकान) के समकक्ष है।
छंद क्या है?
विशिष्ट अर्थों या गीत में वर्णों की संख्या और स्थान से सम्बंधित नियमों को छ्न्द कहते हैं जिनसे काव्य में लय और रंजकता आती है।
छंद व्यवस्था में मात्रा अथवा वर्णों की संख्या, विराम, गति, लय तथा तुक आदि के नियमों का पालन कवि को करना होता है। हिन्दी साहित्य में भी छन्द के इन नियमों का पालन करते हुए काव्यरचना की जाती थी, यानि किसी न किसी छन्द में होती थीं।
यदि गद्य की कसौटी ‘व्याकरण’ है तो कविता की कसौटी ‘छन्द’ है। पद्यरचना का समुचित ज्ञान छन्दशास्त्र की जानकारी के बिना नहीं होता।
छंद के अंग
छंद के निम्नलिखित अंग होते हैं –
गति –
पद्य के पाठ में जो बहाव होता है उसे गति कहते हैं।
यति –
पद्य पाठ करते समय गति को तोड़कर जो विश्राम दिया जाता है उसे यति कहते हैं।
तुक –
समान उच्चारण वाले शब्दों के प्रयोग को तुक कहा जाता है। पद्य प्रायः तुकान्त होते हैं।
मात्रा –
वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। मात्रा २ प्रकार की होती है लघु और गुरु।
ह्रस्व उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा लघु होती है तथा दीर्घ उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा गुरु होती है। लघु मात्रा का मान १ होता है और उसे (। ) चिह्न से प्रदर्शित किया जाता है। इसी प्रकार गुरु मात्रा का मान २ होता है और उसे (ऽ ) चिह्न से प्रदर्शित किया जाता है।
गण –
मात्राओं और वर्णों की संख्या और क्रम की सुविधा के लिये तीन वर्णों के समूह को एक गण मान लिया जाता है।
गणों की संख्या ८ है – यगण (।ऽऽ), मगण (ऽऽऽ), तगण (ऽऽ।), रगण (ऽ।ऽ), जगण (।ऽ।), भगण (ऽ।।), नगण (।।।) और सगण (।।ऽ)।
गण | चिह्न | उदाहरण | प्रभाव |
---|---|---|---|
यगण (य) | ।ऽऽ | नहाना | शुभ |
मगण (मा) | ऽऽऽ | आजादी | शुभ |
तगण (ता) | ऽऽ। | चालाक | अशुभ |
रगण (रा) | ऽ।ऽ | पालना | अशुभ |
जगण (ज) | ।ऽ। | करील | अशुभ |
भगण (भा) | ऽ।। | बादल | शुभ |
नगण (न) | ।।। | कमल | शुभ |
सगण (स) | ।।ऽ | कमला | अशुभ |
गणों को आसानी से याद करने के लिए एक सूत्र बना लिया गया है- यमाताराजभानसलगा।
काव्य में छंद का महत्त्व
- छंद से हृदय को सौंदर्यबोध होता है।
- छंद मानवीय भावनाओं को झंकृत करते हैं।
- छंद में स्थायित्व होता है।
- छंद सरस होने के कारण मन को भाते हैं।
- छंद के निश्चित लय पर आधारित होने के कारण वे सुगमतापूर्वक कण्ठस्थ हो जाते हैं।