छेरछेरा पर कविता / राजकुमार ‘मसखरे

छेरछेरा छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख लोक पर्व है, जिसे पौष मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन गाँवों में बच्चे और युवा घर-घर जाकर अन्न (धान) मांगते हैं और लोग खुशी-खुशी उन्हें दान करते हैं। इस पर्व का उद्देश्य समाज में दान-पुण्य और सहिष्णुता को बढ़ावा देना है।

छेरछेरा पर कविता / राजकुमार ‘मसखरे

        
छेरीकछेरा छेर मरकनिन छेर छेरा
माई  कोठी  के  धान  ल  हेर  हेरा….

पूस पुन्नी के रिहिस हमला बड़ अगोरा
अन्नदान परब के,कर लेथन सङ्गी जोरा
छेरछेराय बर हम जाबो
धर के लाबो झोरा-झोरा…

आ जा मनबोधी अउ आ जा मनटोरा
दिन ह पहावन लागय होगे संझा बेरा
छत्तीसगढ़ हे धान कटोरा
हमर धरती दाई के कोरा…

घन्टी,घुंघरू,बाजा संग कनिहा म डोरा
टुकनी धर के जाबो,गाबो लगाबो फेरा
धान सकेलबो,खजानी लेबो
भर जाए हमर बोरी- बोरा…

दान करबो,दान पाबो आये सुघ्घर बेरा
चार दिन के जिनगानी,का के तेरा-मेरा
अन्नपूर्णा के आसीस ले
छलके कोठी-ढोली,डेरा…

छेरीकछेरा छेर मरकनिन छेर छेरा
माई  कोठी  के  धान  ल  हेर  हेरा !
     
            — *राजकुमार ‘मसखरे’*
   भदेरा (गंडई),जि.केसीजी,(छ.ग.)