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छेरछेरा तिहार के सुग्घर कविता

छेरछेरा तिहार के सुग्घर कविता

छत्तीसगाढ़ी रचना
छत्तीसगाढ़ी रचना

छेरछेरा – अनिल कुमार वर्मा

होत बिहनिया झोला धरके,
सबो दुआरी जाबो।
छेरछेरा के दान ल पाके,
जुरमिल मजा उड़ाबो।।
फुटगे कोठी बोरा उतरगे,
सूपा पसर ले मुठा उतरगे।
नवा जमाना आगे संगी,
मुर्रा लाडू कहाँ पाबो।
छेरछेरा के दान ल पाके,
जुरमिल मजा उड़ाबो।।
सेमी के मड़वा कोठा म पड़वा,
ढेकी सिरागे नंदागे जतवा।
डबर रोटी के पो पो बाजे,
अब अंगाकर कहाँ पाबो।
छेरछेरा के दान ल पाके,
जुरमिल मजा उड़ाबो।।
फरा सोहारी फटफट लागे,
मूर्गा दारु झटपट आथे।
डीजे नचईया ये पीढ़ी म,
डंडा नाचा कहाँ पाबो।
छेरछेरा के दान ल पाके,
जुरमिल मजा उड़ाबो।।
नोनी घला मन जिंस मारके,
आघु खोईल मोबाईल डारके।
जमो छेरछेरा मनाथे।
चला धान हमुं कमाबो।
छेरछेरा के दान ल पाके,
जुरमिल मजा उड़ाबो।।
बेच भांज के सबो धान ल,
पिकनिक चला मनाबो।
कहाँ ले पाबो अटकर बटकर ,
बोकरा भात बनाबो।
छेरछेरा के दान ल पाके,
जुरमिल मजा उड़ाबो।।

रचना – अनिल कुमार वर्मा सेमरताल
[

छेरिक छेरा- राजकुमार मसखरे


छेरिक छेरा छेर मरकनिन छेरछेरा
माई कोठी के धान ल हेर हेरा……

आगे आगे पुस पुन्नी रिहिस हे बड़ अगोरा
अन्न परब के हवय तिहार,करले करले संगी जोरा…
छेर छेराय हम बर जाबो
धर के लाबो झोरा झोरा……!

आ जा राजू,आ जा बंटी, आ जा ओ मनटोरा
जम्मों जाबो,मजा पाबो चलो बनालेथन घेरा……
छत्तीसगढ़ हे धान-कटोरा
ये धरती दाई के कोरा………!

टेपरा धरले, घंटी धरले, धर ले घाँघरा रे शेरा
कोदई धोना,चुरकी,टोपली धर लगाबो जी फेरा…….
धान सकेलबो,खजानी लेबो
चिरहा राहय जी झन बोरा…!

दान पाबो, दान करबो, आये हे जी सुघ्घर बेरा
चार दिन के जिनगानी हे, झन कर तेरा मेरा…..
अन्नपूर्णा के आसीस ले
भरे ढाबा,कोठी घनेरा……..!

छेरिक छेरा छेर मरकनिन छेर छेरा
माई कोठी के धान ल हेर हेरा
अरन बरन कोदो दरन,जभे देबे तभे टरन
आये हे अन्नदान के…ये परब छेर-छेरा…।।

— भदेरा(पैलीमेटा)-गंडई,
जि.-राजनांदगाँव

छेर-छेरा पुन्नी- सन्त राम सलाम

हमर छत्तीसगढ़ में जन मानस के,
छेर छेरा पुन्नी सुग्घर अकन तिहार
इही तिहार ले टकराहा होथे तब,
लइका मन करथे पिकनिक बिहार।।

अपन अपन लोग लइका मन ल ,

सबों सियान मन घलो बने समझाथे।
छेर छेरा धान ल तुम सकेल के राखव,
ऐला धान कुटा केबने रांध गढ के खाथे।।

हमर छत्तीसगढ़ हे धान के कटोरा,
चारो मुडा बोरा-बोरा धान छलकथे।
मेहनत के भरोसा अनाज उपजथे तब,
नवा धान के चिला रोटी खोर ले महकथे।।

दान दक्षिणा के सुग्घर परब,
हमर छत्तीसगढ़ में मनाथे।
लइका मन बर संस्कार होथे,
जेन ल सियान ह समझाथे।।

संगी साथी सबो हितवा मितवा,
चरिहा टुकनी अउ झोला धरथे।
छेर बरतनीन छेरीक छेरा के,
ये गोहार ल मुहाटी में करथे।।

हमर संस्कार धानी छत्तीसगढ़ में,
आठों काल बारहवों महीना तिहार ।
भाजी भांटा बोइर अउ नांदिया पोरा,
टूटहा सुपा-सुपली बर जेठौनी बार।।

बन के पुतरी ह खेत राखत रहिथे,
चिरहा सलवार ल कनिहा में डार के।
पुन्नी के चंदा कस मुडी ह दिखथे,
हमर चना गहूं ओनहारी रखवार के।।

✍️ सन्त राम सलाम

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