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धरती माता रो रो कर करती यही पुकार

धरती माता रो रो कर करती यही पुकार

धरती माता रो रो कर करती  यही पुकार ।
न मेरा रूप बिगाड़ो रे मनुज तुम  मुझे  संवारो ।।
महल बना कर बड़े बड़े
तुम बोझ न मुझ पर डालो ।
पेड़ पौधों को काट काट
कर न पर्यावरण  बिगाड़ो।
मैं हूँ सबकी भाग्य विधाता
सब जीवों से मुझे प्यार ।।
न मेरा रूप बिगाड़ो रे
मनुज तुम मुझे संवारो ।।
मेरे गोद में जन्म लिया तू
मुझसे जीवन पाया
अन्न फल फूल  देकर
तेरे जीवन को महकाया ।
मानव तू अंतस में  झाँक कर
मन में  तनिक  विचार ।
न मेरा रूप बिगाड़ो रे
मनुज तुम मुझे संवारो ।।
चाँद निकलता मैं हँसती
सूर्य ताप  सह जाती हूँ ।
कलरव करती चिडिया
आँगन मन ही मन मुस्काती हूँ ।
कूडा करकट न डाल तू  मुझपे
प्रदूषण को भी संभाल ।
न मेरा रूप बिगाड़ो रे
मनुज तुम मुझे संवारो ।
धरती माता रो रो कर
करती यही पुकार ।
न मेरा रूप—

केवरा यदु “मीरा “
राजिम
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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