डिजेन्द्र कुर्रे कोहिनूर के मुक्तक कविता

मुक्तक – बदरिया की घटाओ सी
बदरिया की घटाओ सी ,तेरी जुल्फें ये कारे है
तेरे माथे की बिंदिया से, झलकते चाँद तारे है
कभी देखा नहीं हमने, किसी चंदा को मुड़ मुड़ के
मगर पूनम तेरी आँखों में,हमने दिल ये हारे है
गैरों से तेरा मिलना, मुझे तिल तिल जलाता है
मगर फिर भी मेरा ये दिल, तेरा ये गीत गाता है
तड़पता हूँ तुझे पाने को सपनों में भी जानेमन
चले आना मेरी पूनम , तुझे ये दिल बुलाता है
मेरे दिल में तेरे ही प्यार, का पूनम बसेरा है।
उजाला तू ही मेरी है, तेरे बिन सब अंधेरा है।
समझना मत कभी मुझको,पराया दूर का कोई।
प्रिया इतना समझ लेना,ये कोहिनूर तेरा है।
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डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
मुक्तक – वहीं तो राह है मेरी
तू मंजिल बन जहाँ बैठी,वहीं तो राह है मेरी ।
तेरा ही प्यार मैं पाऊँ, यहीं तो चाह है मेरी।
तेरे बिन मैं अधूरा हूँ, अधूरे है सभी सपने।
मेरे जीवन की नैय्या में, तु ही मल्लाह है मेरी ।
तुझे देखूँ तो लगता है,मोहब्बत की तू मूरत है।
तेरे बिन मैं कहाँ कुछ भी,तू ही मेरी जरूरत है।
सभी कहते है मुझको,यार तेरी दिलरुबा हमदम।
नगीनों से भी बढ़कर के,बहुत ही खूबसूरत है।
मुक्तक – चुलबुल परी
न कभी ओ झुकी,न किसी से डरी।
बोल उसके ज्यों बजने लगी बाँसुरी।
पापा कह-कह मुझे जो प्रफुल्लित करे,
मेरे बगिया की कोमल सी चुलबुल परी।
तेरी पैजनिया से,स्वर की बरसात हो।
मन को शीतल करे,तुम वही बात हो।
दिखता इंद्रधनुष , तेरी मुश्कान में।
तुम ही दिन हो मेरी,और तुम्ही रात हो।
मुक्तक – पूनम
कमर पतली बदन गोरा,घटा सी बाल है तेरी।
मधुर बोली है कोयल सी,गुलाबी गाल है तेरी।
तेरे नैना ये कजरारे,मुझे पागल बनाती है।
जवानी हुस्न के धन से,ये मालामाल है तेरी।
बुलाने को मुझे हमदम,कभी पायल बजाती हो।
चलाकर तीर नैनों से,मुझे हमदम रिझाती हो।
मगर बाहों में भरने को,ये मन बेताब होता है।
प्रिये पूनम नहीं क्यूँकर, मेरे तुम पास आती हो।
दीवाना बन गया हूँ मैं,तेरी चंचल अदाओं का।
तेरे तन को चले छूकर,उन्हीं महकी हवाओं का।
तेरे होठों को मैं चूमूँ , सदा बेताब रहता हूँ।
है चाहत मेरे इस मन को,तेरी भी आशनाओ का।
मेरी पूनम तेरे दिल में,समाके मर गया हूँ मैं।
तेरी ही नाम में अब तो,ये जीवन कर गया हूँ मैं।
बहुत बिगड़ा हुआ था मैं,मगर जब से मिली हैं तू।
तुझे पाने के चक्कर में,बहुत ही सुधर गया हूँ मैं।
तेरे हाथों को सहलाकर,ऐ पूनम थाम लूँगा मैं।
बुलाऊँगा इशारों से , नहीं अब नाम लूँगा मैं।
हमारे प्यार को कोई ,ना कोई जान पायेगा।
समझदारी से जानेमन,सभी अब काम लूँगा मैं।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
मुक्तक -प्यार
मेरे दिल में बसी यादें, सुबह से शाम तेरे है।
लबो पर सिर्फ ऐ पूनम,बस इक ही नाम तेरे है।
तुझे देखूँ तुझे चाहूँ, तुझे पूजू हर एक पल।
नहीं इससे बड़ा दुनिया में,कुछ भी काम मेरे है।
मेरे दिल में भी कुछ लिख दे,मैं एक किताब कोरा हूँ।
मधुर लोरी अगर है तू , तू मोहक मैं भी लोरा हूँ।
नहीं मैं कम किसी भी बात में ,तुझसे मेरी हमदम।
तू गर पूनम है रातों की,तो मैं भी इक चकोरा हूँ।
तेरी कंगन की खन-खन में,खनकता प्यार है मेरा।
तुझे गर जीत मिल जाए , समर्पित हार है मेरा।
शिवा तेरे बिना पूनम , नहीं कुछ सूझता मुझकों।
तेरे पल्लू के साये में , सुखद संसार है मेरा।
डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
मुक्तक – तुम्हारे बिन मैं रातों को
तुम्हारे बिन मैं रातों को,तड़प कर आहें भरता हूँ।
तेरी यादों की गलियों में,मैं रुक रुक कर गुजरता हूँ।
नहीं कुछ सूझता मुझकों,तेरे बिन आज दुनिया में।
मैं प्यासा हूँ मेरी पूनम,तुम्हीं से प्यार करता हूँ।
निगाहें जब उठाती हो,खिली इक बाग लगती हो।
जो रहती हो कभी गुस्सा में,भड़की आग लगती हो।
मगर हमदम इशारों में,मुझे जब जब बुलाती हो।
महकता सुर्ख कोमल सा,प्रेम गुलाब लगती हो।
किसी मंदिर की मूरत सी,तेरी सूरत ये पावन है।
तेरी बोली मधुर मुझको,सदा लगती सुहावन है।
तेरे कदमों में कोहिनूर,तन मन हार बैठा है।
तू मिल जाए अगर मुझको,वहीं घनघोर सावन है।
दीवाना हूँ उजालों का,नहीं अंधियार चाहूँ मैं।
दुखों से दूरियाँ नित हो,सदा सुखसार चाहूँ मैं।
ना मुझसे दूर होना तुम,तेरे बिन मर ही जाऊँगा।
मेरी पूनम जनम भर का,तेरा ही प्यार चाहूँ मैं।
बड़ा प्यारा है हर इक पल,मेरे जो पास रहती हो।
मैं उड़ जाता हूँ अम्बर में,मुझे हम दम जो कहती हो।
तेरे बिन मैं नहीं कुछ भी,तुम्ही हो दिल की धड़कन में।
लहू की धार बनके तुम,मेरे रग रग में बहती हो।
तुम्ही हमदम मेरा जीवन,मेरे ख्वाबों की रानी हो।
जो सुख दुख में सदा संग है,मेरे आँखों का पानी हो।
अधूरा हूँ तेरे बिन मैं, नहीं जी पाऊँगा जग में।
मेरे जीवन के पथ में प्रेम की ,तुम ही कहानी हो।
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”