फागुन आ गया

     फागुन आ गया

हर्षोल्लास था गुमशुदा
दौर तलाश का  आ गया।
गुम हुई खुशियों को लेकर
फिर से  फागुन आ गया॥
झुर्रियां  देखी जब चेहरे पर 
लगा बुढ़ापा आ गया।
उम्र की सीमा को तोड़कर
उत्साही फागुन आ गया॥
अहंकार का घना कोहरा
एकाकीपन  छा गया।
अंधेरों को चीरकर लो
उजला  फागुन आ गया॥
पहरा गहरा था गम  का
अवसाद  मन में छा गया।
टूटे दिलों के तार जोड़ने
फिर से फागुन आ गया॥
चारों तरफ टेसू पलाश हैं 
लो उल्हास फिर  छा गया।
फुहार प्रेम की संग लेकर ये
फिर से  फागुन  आ गया।
मधु सिंघी
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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