फिर क्या दूर किनारा

फिर क्या दूर किनारा

त्याग प्रेम के पथ पर चलकर
मूल न कोई हारा।
हिम्मत से पतवार सम्भालो
फिर क्या दूर किनारा।

हो जो नहीं अनुकूल हवा तो
परवा उसकी मत कर।
मौजों से टकराता बढ़ चल
उठ माँझी साहस धर।
धुन्ध पड़े या आँधी आये
उमड़ पड़े जल धारा॥१॥

हाथ बढ़ा पतवार को पकड़ो
खोल खेवय्या लंगर।
मदद मल्लाहों की करता है
बाबा भोले संकर।
जान हथेली पर रखकर
लाखों को तूने तारा॥२॥

दरियाओं की छाती पर था
तूने होश संभाला।
लहरों की थपकी से सोया
तूफानों ने पाला
जी भर खेला डोल भंवर से
जीवन मस्त गुजारा॥३॥

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।