फिर क्या दूर किनारा

फिर क्या दूर किनारा

त्याग प्रेम के पथ पर चलकर
मूल न कोई हारा।
हिम्मत से पतवार सम्भालो
फिर क्या दूर किनारा।

सम्बंधित रचनाएँ

हो जो नहीं अनुकूल हवा तो
परवा उसकी मत कर।
मौजों से टकराता बढ़ चल
उठ माँझी साहस धर।
धुन्ध पड़े या आँधी आये
उमड़ पड़े जल धारा॥१॥

हाथ बढ़ा पतवार को पकड़ो
खोल खेवय्या लंगर।
मदद मल्लाहों की करता है
बाबा भोले संकर।
जान हथेली पर रखकर
लाखों को तूने तारा॥२॥

दरियाओं की छाती पर था
तूने होश संभाला।
लहरों की थपकी से सोया
तूफानों ने पाला
जी भर खेला डोल भंवर से
जीवन मस्त गुजारा॥३॥

You might also like