मानवता पर ग़ज़ल – बाबूराम सिंह

मानवता पर ग़ज़ल

kavita-bahar-hindi-kavita-sangrah

तपस्या तपमें गल कर देखो।
सत्य धर्म पर चल कर देखो।।

प्रभु भक्ति शुभ नेकी दान में,
अपना रूख बदलकर देखो।

दीन-दुखीअबला-अनाथ की,
पीड़ा बीच पिघल  कर  देखो।

सेवा समर्पण  शुभ  कर्मों  में,
शुचि संगत में ढ़ल कर देखो।

त्याग  संतोष होश रखो जग,
सचमें सदा मचल कर देखो।

करूणा  दया  हया  मध्य रह,
पग-पग नित संभलकर देखो।

क्या करनाथा क्या कर डाला,
अपना करखुद मलकर देखो।

कपट  दम्भ  पाखंड -पाप से,
पल-पल प्यारे टल कर देखो।

बर्बादी   तज  बाबूराम  कवि,
सभी प्रश्नों का हल कर देखो।

———————————————–
बाबूराम सिंह कवि,गोपालगंज,बिहार
   मोबाइल नम्बर- 9572105032
———————————————–

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *