गीत-सूनी सूनी संध्या भोर पर कविता

संध्या भोर पर कविता

काली काली लगे चाँदनी
चातक करता नवल प्रयोग।
बदले बदले मानस लगते
रिश्तों का रीता उपयोग।।

हवा चुभे कंटक पथ चलते
नीड़ों मे दम घुटता आज
काँप रहा पीला रथ रवि का
सिंहासन देता आवाज
झोंपड़ियाँ हैं गीली गीली
इमारतों में सिमटे लोग।
बदले…………………।।

गगन पथों को भूले नभचर,
सागर में स्थिर है जलयान
रेलों की सीटी सुनने को
वृद्ध जनों के तरसे कान
करे रोजड़े खेत सुरक्षा
भेड़ करें उपवासी योग।
बदले………………..।।

हाट हाट पर उल्लू चीखे
चमगादड़ के घर घर शोर
हरीतिमा भी हुई अभागिन
सूनी सूनी संध्या भोर
प्राकृत का संकोच बढ़ा है
नीरवता का शुभ संयोग।
बदले…………………।।

बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
बौहरा-भवन सिकंदरा,३०३३२६

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *