हार नहीं होती हिन्दी कविता

धीरज रखने वालों की हार नहीं होती।
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती।
एक नन्हींसी चींटी जब दाना लेकर चलती है।।
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है।
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती। धीरज रखने
डुबकियाँ सिन्धु में गोताखोर लगाते हैं।
जो जाकर खाली हाथ लौट फिर आते हैं।
मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में।
बढ़ता दूना उत्साह इसी हैरानी में।
खाली उसकी मुट्ठी हर बार नहीं होती। धीरज…
असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो।
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो॥
जब तक न जीत हो, नींद, चैन को त्यागो तुम,
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम,
कुछ किये बिना ही जय साकार नहीं होती।
धीरज रखने वालों की हार नहीं होती।