हिंदी संग्रह कविता-नये समाज के लिए

नये समाज के लिए


नये समाज के लिए नया विधान चाहिए।
असंख्य शीश जब कटे
स्वदेश-शीश तन सका,
अपार रक्त-स्वेद से,
नवीन पंथ बन सका।
नवीन पंथ पर चलो, न जीर्ण मंद चाल से,
नयी दिशा, नये कदम, नया प्रयास चाहिए।
विकास की घड़ी में अब,
नयी-नयी कलें चलें,
वणिक स्वनामधन्य हों,
नयी-नयी, मिलें चलें।
मगर प्रथम स्वदेश में, सुखी वणिक-समाज से,
सुखी मजूर चाहिए, सुखी किसान चाहिए।
विभिन्न धर्म पंथ हैं,
परन्तु एक ध्येय के।
विभिन्न कर्मसूत्र हैं,
परन्तु एक श्रेय के।
मनुष्यता महान धर्मं , महान कर्म है,
हमें इसी पुनीत ज्योति का वितान चाहिए।

हमें न स्वर्ग चाहिए,
न वज्रदंड चाहिए,
न कूटनीति चाहिए,
न स्वर्गखंड चाहिए।
हमें सुबुद्धि चाहिए, विमल प्रकाश चाहिए,
विनीत शक्ति चाहिए, पुनीत ज्ञान चाहिए।

रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

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