श्रीकृष्ण पर कवितायें- जन्माष्टमी पर्व विशेष

श्रीकृष्ण पर कवितायें

हठ कर बैठे श्याम, एक दिन मईया से बोले।
ला के दे-दे चंद्र खिलौना चाहे तो सब ले-ले।
हाथी ले-ले, घोड़ा ले-ले, तब मईया बोली।
कैसे ला दूं चंद्र खिलौना, वो तो है बहुत दूरी।

दूर गगन में ऐसे चमके, जैसे राधा का मुखड़ा।
देख के ऐसा रूप सलोना कान्हा का मन डोला।
राधा रानी को आज बुला दूं जो उनके संग खेले।
चंदा न दे पाऊं तुझको, मईया बोली सुन प्यारे।

देख इसे जी ललचाए, खा जाऊं जो मिल जाए।
देख मईया इसका रंग, लगे जैसे माखन के गोले।
दूध दही के भंडार भरे, आज माखन तुझे खिला दूं।
गाकर लोरी गोद में अपनी, आजा तुझे सुला दूं।

न गाय चराने जाऊं, न ग्वाल बाल संग खेलूंगा।
जो न दे तू चंद्र खिलौना, तुझसे मैं न बोलूंगा।
लोटन लगे भूमि पर तब, बोले कृष्ण कन्हैया।
ला के दे-दे चंद्र खिलौना, सुन ओ मोरी मईया।

पानी भर कर थाली में, तब मईया ने रख दी।
मुस्काने लगे कृष्ण कन्हैया देख कर उसकी छवि।
देख कर ये लीला अलबेली, चंद्र देव भी मुस्काए।
प्रभु के संग खेलन को, गगन से जमीं पर उतर आए।

सुशी सक्सेना

हमें दुर्दिनों से बचाना कन्हैया

गीत-उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

समर्पित तुम्हें फूल भरकर डलइया, उफनती है अब भावना की तलइया
हमें दुर्दिनों से बचाना कन्हैया, कहीं डूब जाए न जीवन की नइया।

लगे दुष्ट कितने ही पीछे हमारे, रहें हम सदा ही तुम्हारे सहारे
बनो तुम्हीं माँझी लगाना किनारे, तो फिर आँसुओं के बहें क्यों पनारे

न रोए कहीं पर किसी की भी मइया, न आपस में कोई लड़े आज भइया
हमें दुर्दिनों से बचाना कन्हैया, कहीं डूब जाए न जीवन की नइया।

तुम्हारी कृपा से बनें काम सारे, चमकते रहें देखो अपने सितारे
मिटाओ सभी कष्ट विनती यह प्यारे, रहें हम सदा ही तुम्हारे दुलारे

पले आज घर- घर में अब एक गइया, भरे सबके घर में दही की मलइया
हमें दुर्दिनों से बचाना कन्हैया, कहीं डूब जाए न जीवन की नइया।

पुकारें यहाँ हम कहाँ भोली राधा, हमारी डगर में न हो कोई बाधा
यहाँ गोपियों ने है जो काम साधा, तुम्हारा लगा मन वहीं आज आधा

घूमे यहाँ पर तुम्हारा ही पहिया, तुम्हीं सृष्टि में रास-लीला रचइया
हमें दुर्दिनों से बचाना कन्हैया, कहीं डूब जाए न जीवन की नइया।

चलें आज गोकुल नगरिया जो न्यारी, जहाँ गूँजती बाँसुरी है तुम्हारी
जुड़ी हैं कथाएँ जसोदा से प्यारी, करें सबको भावुक नर हों या नारी

न लो तुम परीक्षा मिटाओ बलइया, करेगा नहीं तब कोई हाय दइया
हमें दुर्दिनों से बचाना कन्हैया, कहीं डूब जाए न जीवन की नइया

-उपमेंद्र सक्सेना एड०’कुमुद- निवास’
बरेली(उ०प्र०)

जन्माष्टमी पर्व है आया

जन्माष्टमी पर्व है आया
सुख समृद्धि उल्लास है छाया
मंगल पावन अनुपम बेला
विराज रहे लड्डू गोपाला

मोर पंख का मुकुट निराला
सर पर पहने हैं नंदलाला
हाथों में है बंसी शोभे
गले सुशोभित वैजयंती माला

चंदन तिलक लगाए लल्ला
तन पर पीले वस्त्र का जामा
श्याम वर्ण है सुंदर काया
घर-घर झूल रहे हैं झूला

पीला पुष्प सुरभित कस्तूरी
कानन कुण्‍डल भव्य मुख मंडल
अद्भुत अलौकिक रूप सजीला
सजा रही हर घर की बाला

यशोदा माँ का राज दुलारा
मन मोहिनी श्रृंगार तुम्हारा
नंद बाबा की शान तुम ही से
तुम्हें पसंद तुलसी की माला

माखन मिश्री दही दूध चढ़ाती
छप्पन तरह के भोग लगाती
भाव विह्वल प्रीति दर्शाती
आरती गाकर आशीष पाती -

आशीष कुमार मोहनिया बिहार

कृष्ण कन्हैया

दर्शन देना श्याम अब , नैन हुए बेचैन।
रो रो अँखिया थक गई,मिला न मुझको चैन।।

कृष्ण कन्हैया जल्द आ , नैन हुए बेचैन।
तव दर्शन की आस में , असुवन बरसे नैन।।

कभी मैं मीरा बन जाऊं, कभी राधा बन जाऊं।
श्याम तेरे जीवन का, हिस्सा आधा बन जाऊं।

जीवन बीता जा रहा , होने को अब अस्त।
नैन हुए बेचैन है , मनवा अब है पस्त।।

नैन हुए बेचैन है , ढलने को अब रात।
आना हो तो कृष्ण आ , ढीला पड़ता गात।।

नैन हुए बेचैन है , सुध लेना घन श्याम।
जीवन की संध्या हुई , पूर्ण करो सब काम।।

भादौ मास अष्ठम तिथि , प्रकटे कृष्ण मुरार।
प्रहरी सब अचेत हुए , जेल गये खुल द्वार।।1

जमुना जी उफान करे, पैर छुआ कर शान्त।
वासुदेव धर टोकरी , नन्द राज के कान्त।।2

कंस बङा व्याकुल हुआ,ढूढे अष्ठम बाल।
नगर गांव सब ढूंढकर ,मारे अनेक लाल।।3

मधुर मुरलिया जब बजी,रीझ गये सब ग्वाल।
नट नागर नटखट बङा , दौङे आये बाल।।4

कृष्ण सुदामा मित्रता , नहीं भेद प्रभु कीन।
तीन लोक की संपदा , दो मुठ्ठी में दीन।।5

कृष्ण मीत सा कब मिले, रखे सुदामा प्रीत।
सदा निभाया साथ है, बनी यही है रीत।6

असुवन जल प्रभु पाँव धो,कहे मीत दुख पाय।
इतने दिन आये नहीं, हाय सखा दुख पाय।।7

मदन सिंह शेखावत ढोढसर स्वरचित

कुण्डलिया छंद -श्रीकृष्ण जन्माष्टमी


छीने शासन तात का, उग्रसेन सुत कंस।
वासुदेव अरु देवकी, करे कैद निज वंश।
करे कैद निज वंश, निरंकुश कंस कसाई।
करता अत्याचार, प्रजा अरु धरा सताई।
कहे लाल कविराय, निकलते वर्ष महीने।
वासुदेव संतान, कंस जन्मत ही छीने।
. …….👀 २ 👀…..
बढ़ते अत्याचार लख, भू पर हाहाकार।
द्वापर में भगवान ने, लिया कृष्ण अवतार।
लिया कृष्ण अवतार, धरा से भार हटाने।
संत जनो हित चैन, दुष्ट मय वंश मिटाने।
कहे लाल कविराय,दुष्ट जन सिर पर चढ़ते।
होय ईश अवतार, पाप हैं जब जब बढ़ते।
. ….👀 ३ 👀…..
भादव रजनी अष्टमी, लिए ईश अवतार।
द्वापर में श्री कृष्ण बन, आए तारनहार।
आए तारनहार , रची लीला प्रभुताई।
मेटे अत्याचार, प्रीत की रीत निभाई।
कहे लाल कविराय,कृष्ण जन्में कुल यादव।
जन्म अष्टमी पर्व, मने अब घर घर भादव।
(भादव~भादौ,भादों,भाद्रपद, भादवा )
. …..👀 ४ 👀….
लेकर जन्मत कृष्ण को,चले पिता निर्द्वंद।
वर्षा यमुना बाढ़ सह, पहुँचाए घर नंद।
पहुँचाए घर नंद, लिए लौटे वे कन्या।
पहुँचे कारागार, कंस ने छीनी तनया।
कहे लाल कविराय, नेह माता का देकर।
यशुमति करे दुलार, नंद हँसते सुत लेकर।
. …..👀 ५ 👀…..
पालन हरि का कर रहे, नंद यशोदा गर्व।
मनती है जन्माष्टमी, तब से घर – घर पर्व।
तब से घर-घर पर्व, खुशी गोकुल में मनती।
शिशु को लेने गोद, होड़ नर नारी ठनती।
कहे लाल कविराय, हुआ ब्रज सारा पावन।
जग का पालनहार,करे माँ यशुमति पालन।
. ……👀 ६ 👀…….
कौरव पाण्डव युद्ध में, बने कृष्ण रथवान।
गीता के उपदेश में, देते ज्ञान महान।
देते ज्ञान महान , धर्म हित युद्ध ठनाएँ।
बने कन्हैया कृष्ण,रूप जो विविध बनाएँ।
कहे लाल कविराय,सनातन कान्हा गौरव।
रखे विदुर का मान, हराए रण में कौरव।
. …..👀 ७ 👀……
गाते गिरधर लाल की, सभी निराली नीति।
गोधन ग्वाले गोपिका, ब्रजतरु उत्तम प्रीति।
ब्रजतरु उत्तम प्रीति,सखे जलजमुना सजते।
मिटे सकल जंजाल,कालिये फन पर नचते।
कहे लाल कविराय, मिताई प्रीत निभाते।
कृष्ण कन्हैया लाल, समर में गीता गाते।
. …..👀 ८ 👀……
भारी वर्षा इन्द्र ने, कर दी कोपि घमंड।
सोच रहे ब्रजवासियों, लो अब भुगतो दंड।
लो अब भुगतो दंड, नही करते तुम पूजा।
आज बचाए कौन, धरा पर देखूँ दूजा।
कहे लाल कविराय, बने कान्हा गिरिधारी।
नख पर गिरिवर धारि, छत्र गोवर्धन भारी।
. . ….👀 ९ 👀……
साड़ी से इक चीर ले, बांधी कान्हा हाथ।
द्रुपद सुता के कर्ज को, याद रखे ब्रजनाथ।
याद रखे ब्रजनाथ, सखी बहिना सम माने।
सदा द्वारिका धीश, धर्म का पथ पहचाने।
कहे लाल कविराय,दुशासन नियति बिगाड़ी।
पांचाली हित लाज, कृष्ण विस्तारी साड़ी।
. …….👀१० 👀…..
मंदिर गोकुल द्वारिका, बने अनेको धाम।
गोवर्धन पथ गूँजता, राधे कृष्णा नाम।
राधे कृष्णा नाम, रटे जन देश विदेशी।
वृन्दावन सुखधाम, नारि. मीरा सम वेषी।
कहे लाल कविराय, कन्हाई शोभित सुन्दर।
घर-घर पूजित कान्ह,प्रशंसित मथुरा मंदिर।
. ……👀११ 👀……
राधे बड़ भागी हुई, यादें पुष्प सुवास।
सूर, देव, रसखान जी, मीरा अरु रैदास।
मीरा अरु रैदास, समर्पित भक्ति निभाई।
रचे बहुत से काव्य , गीत दोहा कविताई।
शर्मा बाबू लाल, छंद कुण्डलिया साधे।
दौसा जिले निवास,लिखे जय कान्हा राधे।

बाबू लाल शर्मा, बौहरा विज्ञ
V/P सिकंदरा, जिला दौसा

नटखट रचावे लीला न्यारी हो

नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी
नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी
बाँके बिहारी मोरा बाँके बिहारी
बाँके बिहारी मोरा बाँके बिहारी
नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी
नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी

आई पूतना बालक उठाने
बालक उठाने हो बालक उठाने
दूध मुँहे को माहुर पिलाने
माहुर पिलाने हो माहुर पिलाने
हर लिए प्राण पटवारी हो
मोरा बाँके बिहारी
बाँके बिहारी मोरा बाँके बिहारी
बाँके बिहारी मोरा बाँके बिहारी
नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी
नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी

ग्वाल बाल संग गैया चरावे
गैया चरावे हो गैया चरावे
जमुना के तट पर खेले खिलावे
खेले खिलावे हो खेले खिलावे
खेल खेल में नथाया कालिया भारी हो
मोरा बाँके बिहारी
बाँके बिहारी मोरा बाँके बिहारी
बाँके बिहारी मोरा बाँके बिहारी
नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी
नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी

गोपियाँ सारी माखन छुपावे
माखन छुपावे हो माखन छुपावे
गोविंदा बन कर माखन चुरावे
माखन चुरावे हो माखन चुरावे
फोड़ दिया मटका बनवारी हो
मोरा बाँके बिहारी
बाँके बिहारी मोरा बाँके बिहारी
बाँके बिहारी मोरा बाँके बिहारी
नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी
नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी

लगा गरजने मेघ क्षितिज पर
मेघ क्षितिज पर हो मेघ क्षितिज पर
मदी इंद्र के भारी कहर पर
भारी कहर पर हो भारी कहर पर
तोड़ दिया घमंड गोवर्धन धारी हो
मोरा बाँके बिहारी
बाँके बिहारी मोरा बाँके बिहारी
बाँके बिहारी मोरा बाँके बिहारी
नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी
नटखट रचावे लीला न्यारी हो
मोरा बाँके बिहारी -

आशीष कुमार मोहनिया बिहार

राधा कहे मैं प्रेम दिवानी हूं।

राधा कहे मैं प्रेम दिवानी हूं।
मीरा कहे मैं दर्श दिवानी हूं।
मैं तो तेरी रूह में बस जानी हूं।
तराना तेरी मुरली का कोई सीधा सादा बन जाऊं।

राधा पिए प्रेम का प्याला है।
मीरा पिए जहर का प्याला है।
तेरी इक आस पर मन मोहन,
अधरों से सुधारस पीने का इरादा बन जाऊं।

तेरे प्रेम की मैं जन्मों की प्यासी हूं।
मगर श्याम तेरे चरणों की दासी हूं।
तेरे संग जीना, तेरे संग मर जाना,
तुझ संग प्रेम का इक प्यारा सा वादा बन जाऊं।

राधा के तुम मन मोहन हो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर।
मेरे मन के सुंदरश्याम सलोने,
तेरे हर रूप की मोहिनी मैं कुछ ज्यादा बन जाऊं।

सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश

कृष्ण कन्हैया

भादौ मास अष्ठम तिथि , प्रकटे कृष्ण मुरार।
प्रहरी सब अचेत हुए , जेल गये खुल द्वार।।1

जमुना जी उफान करे, पैर छुआ कर शान्त।
वासुदेव धर टोकरी , नन्द राज के कान्त।।2

कंस बङा व्याकुल हुआ,ढूढे अष्ठम बाल।
नगर गांव सब ढूंढकर ,मारे अनेक लाल।।3

मधुर मुरलिया जब बजी,रीझ गये सब ग्वाल।
नट नागर नटखट बङा , दौङे आये बाल।।4

कृष्ण सुदामा मित्रता , नहीं भेद प्रभु कीन।
तीन लोक की संपदा , दो मुठ्ठी में दीन।।5

कृष्ण मीत सा कब मिले, रखे सुदामा प्रीत।
सदा निभाया साथ है, बनी यही है रीत।6

असुवन जल प्रभु पाँव धो,कहे मीत दुख पाय।
इतने दिन आये नहीं, हाय सखा दुख पाय।।7

मदन सिंह शेखावत ढोढसर स्वरचित

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