जलती धरती /हरि प्रकाश गुप्ता सरल
धरती जलती है तो जलने दीजिए।
पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।।
भले ही जल जाए सभी कुछ यहां
पर पर्यावरण की न चिंता कीजिए।
कुछ तो रहम करो भविष्य के बारे में
अपने लिए न सही आगे की सोचिए।।
न रहेंगे जंगल और न रहेगी शीतलता
हरियाली धरा में न दिख पाएगी।
न कुछ फिर बचेगा धरा पर
धरती मां भी कुछ न कर पाएगी।।
सभी कुछ बर्बाद हो जाएगा
बीमारियों का बोलबाला छा जाएगा।
यहां से वहां तक धरा में अंधेरा ही अंधेरा हो जाएगा।।
धरती जलती है तो जलने दीजिए।
पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।।
धरती जलने से बचाव भाईयो
सभल सको तो सभल जाओ।
हम तो साथ तेरे न कबसे खड़े
जरा तुम भी तो आगे मेरे साथ आओ।।
सूर्य की किरणों की गर्मी को न सह पाएंगे।
बिना मौत आए सभी मौत को गले लगाएंगे।।
समझा रही प्यारी – प्यारी हरियाली युक्त हमारी धरती माता ।
पर समझ कहां किसी को समझ किसी को भी क्यों नहीं आता।।
जहां खाली जगह पाओ
वहां वृक्ष अवश्य लगाओ।
हरियाली धरती पर और हरे भरे जंगल हमारे।
सभी को लगते कितने प्यारे – प्यारे।।
जल भी होगा और स्वच्छ वातावरण भी होगा।
स्वस्थ सभी रहेंगे न कोई रोगी होगा।।
स्वच्छ हवाओं का झरोखा आता रहेगा।
दिल अपना सुबह-शाम घूमने को कहेगा।।
पार्कों और बागों की खूबसूरती बढ़ेगी।
प्रकृति न जाने कितनी खूबसूरत दिखेगी।।
फूल भी खिलेंगे और फल भी लगेगा ।
खेतों में सभी के खूब अनाज उगेगा ।।
धनवान और ऊर्जावान सभी हो जाएंगे।
धरती भी जलने से बच जाएगी।।
नदियों का क्या जलयुक्त रहेंगी
पहले की तरह बहती रहेंगी।।
पर्वत हमारे सुंदरता बढ़ाएंगे।
उन पर भी जब पेड़ उग आएंगे।।
खाली खाली जंगल घने हो जाएंगे।
जंगली जानवर खुश हो जाएंगे।।
फिर न शिकार खोजने गांव और शहर
जाएंगे।
प्राणी भी उनके डर से मुक्त हो जाएंगे।।
धरती जलती है तो जलने दीजिए।
पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।।
इंजीनियर हरि प्रकाश गुप्ता सरल
भिलाई छत्तीसगढ़