जीवन रुपी रेलगाड़ी – सावित्री मिश्रा

जीवन रुपी रेलगाड़ी


कभी लगता है जीवन एक खेल है,
कभी लगता है जीवन एक जेल है।
पर  मुझे लगता है कि ये जीवन
दो पटरियों पर दौड़ती रेल है।
भगवान ने जीवन रुपी रेल का
जितनी साँसों का टिकट दिया है,
उससे आगे किसी ने सफर नहीं किया
सुख और दुख जीवन की दो पटरियाँ,
शरीर के अंग जीवन रुपी रेल के डिब्बे हैं।
जीवन रुपी रेल के डिब्बे जब तक,
जवानी की स्पीड पकडते हैं,
तब तक माँ बाप गार्ड की
भूमिका में पीछे -पीछे चलते हैं।
जीवन रुपी रेल के डिब्बों मे जो
बिमारियों की तकनीकी खराबी आती है,
वो हमें कमजोर आना जाती है।
जीवन रुपी ये रेल अन्तिम स्टेशन पहुँचे
और हमेशा के लिये  ब्रेक लग जाए ।
आओ मिल कर एक दुसरे के काम आएं,
जीवन रुपी रेल के सफर को सुहाना बनाएं।

सावित्री मिश्रा
झारसुगुड़ा ,ओडिशा

दिवस आधारित कविता