क्रांति का सागर पर लेख
1947, में फिर से तिरंगा लहराया था, हमने फिरंगियों को भारत से मार भगाया था। क्रांति वो सागर जो हर व्यक्ति में बह रहा था। ये उस समय की बात है, जब बच्चा बच्चा आजादी आजादी कह रहा था। मै शीश जूकाता हूं, उनके लिए जिन्होंने शीश कटवाया था, भारत माता के लिए। आजादी की ऐसी होड़ जो हर व्यक्ति में दौड़ रही थी, ये मत भूलो की उन्होंने ही नए भारत की नीम रखी थी। जलियावाले बाघ की तो कहीं सुनी कहानी थी, हजारों बलिदानों की वो एक मात्र बड़ी कहानी थी। क्रांति का वो सागर जो धीरे धीरे बड रहा था, फिरंगियों को क्या पता वो उनके लिए ही उमड़ रहा था।
Writer-Abhishek Kumar Sharma