कर्ज पर कविता

कर्ज पर कविता

कर्ज था

कर्ज था
कर्ज ही
उस किसान का
मर्ज था
कह गया अलविदा
जहान को

कर्ज था
कर्ज ही
उस पूंजीपति का
मर्ज था
कह गया अलविदा
भारत को

कर्ज था
कर्ज ही
उस बैंक का
मर्ज था
कह गया अलविदा
अस्तित्व को

-विनोद सिल्ला©

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