कटुक वचन है ज़हर सम

कटुक वचन है ज़हर सम

वाणी ही है खींचती भला बुरा छवि चित्र
वाणी से बैरी बने वाणी से ही मित्र
संयम राखिए वाणी पर वाणी है अनमोल
निकसत है इक बार तो विष रस देती घोल।


कटुक वचन है ज़हर सम मीठे हैं अनमोल
वाणी ही पहचान कराती तोल मोल कर बोल
कटु वाणी हृदय चुभे जैसे तीर कटार के
घाव भरे न कटु वाणी के भर जाए तलवार के।


मृदु वचन से अपना बने कटु वचनों  से  गैर
मीठी रखिए वाणी भाव कभी न होगा बैर
वाणी है वरदान इक वाणी से सब दाँव
मधुर वाणी देती खुशी कर्कश देती घाव।


कोयल कागा एक से अंतर दोनों के बोल
वशीकरण है मंत्र इक मृदु वचन अनमोल
कटु वाणी सुन लोग सब आपा  देते खोय
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।


मीठी वाणी औषधि मरहम देत लगाय
कटु वाणी है कंटीली नश्तर देत चुभाय
जख़्म देती कटु वाणी मन को चैन न आय
मीठी वाणी हृदय को अमृत सम सुहाय।


कटु वाणी दुख देत है बिन भानु ज्यों भोर
मीठी वाणी अनंत सी जिसका न कोई छोर
कटु वाणी कर्कश सदा ज्यों मेघों का रोर
सुख जीवन में चाहो तो तज दे वचन कठोर।


कटु वाणी से जगत में शहद भी नहीं बिक पाता
मीठी वाणी के आगे नीम नहीं टिक पाता
कह ”कुसुम” वाणी मधुर कर दे मन झंकार।
तज दे वाणी कटु सदा संबंधों का आधार।

कुसुम लता पुंडोरा
आर के पुरम
नई दिल्ली

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