सूरज पर कविता- आर आर साहू

सूरज पर कविता

सुबह सबेरे दृश्य
सुबह सबेरे दृश्य

लो हुआ अवतरित सूरज फिर क्षितिज मुस्का रहा।
गीत जीवन का हृदय से विश्व मानो गा रहा।।

खोल ली हैं खिड़कियाँ,मन की जिन्होंने जागकर,
 नव-किरण-उपहार उनके पास स्वर्णिम आ रहा।

खिल रहे हैं फूल शुभ,सद्भावना के बाग में,
और जिसने द्वेष पाला वो चमन मुरझा रहा।

चल मुसाफिर तू समय के साथ आलस छोड़ दे,
देख तो ये कारवाँ पल का गुजरता जा रहा।

बात कर ले रौशनी से,बैठ मत मुँह फेरकर,
जिंदगी में क्यों तू अपने बन अँधेरा छा रहा।

नीड़ से उड़ता परिंदा,बन गया है श्लोक सा,
मर्म गीता का हमें,कर कर्म, ये समझा रहा ।
—– R.R.Sahu
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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