मैं हूँ पहाड़
मैं हूँ पहाड़
तुम्हारे आकर्षण का
हूँ केन्द्र
शक्ति का
विशालता का
हूँ परिचायक
नदियाँ हैं
मेरी सुता
जो हैं पराया धन
हो जाती हैं
मुझसे जुदा
होती हैं बेताब
समुद्र से मिलने को
समुद्र में
विलीन होने को
होती हैं
मुझसे जुदा
नई दुनिया
बसाने को
-विनोद सिल्ला©
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद