मैं हर पत्थर में तुम्हीं को देखता हूँ

मैं हर पत्थर में तुम्हीं को देखता हूँ,

मैं हर पत्थर में तुम्हीं को देखता हूँ,
जब आँखों से मोहब्बत देखता हूँ।
अब जल्दी नहीं कि सामने आओ मेरे,
मैं तो तस्वीर भी दूर कर देखता हूँ।
जहां में सब उजाले में देखते हैं तुम्हें,
मैं तो अंधेरे में तेरा चेहरा देखता हूँ।
सब तुझमें, खुद को देखना चाहते थे,
मैं चाहता ही नहीं हूँ, बस देखता हूँ।
अजीब है न किसी की उल्फ़तें देखना,
मगर किरदार में, मैं हूँ, तो देखता हूँ।
मेरी हरकतों ने बतलाया होगा “चंचल”,
मैं किस कदर ग़ज़ल में उसे देखता हूँ।


सागर गुप्ता “चंचल”

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

Leave a Reply