मापनीमुक्त मात्रिक छंद विशेषताएं :
(क) इन छंदों की लय को किसी मापनी में बाँधना संभव नहीं है l इन छंदों की लय को निर्धारित करने के लिए कलों ( द्विकल 2 मात्रा, त्रिकल 3 मात्रा, चौकल 4 मात्रा) का प्रयोग किया जाता है –
द्विकल = 2 या 11
त्रिकल = 21 या 12 या 111
चौकल = 22 या 211 या 112 या 121 या 1111
(ख) कलों के अतिरिक्त चरणों या पदों के आदि-अंत में किसी निश्चित मात्राक्रम की चर्चा भी की जाती है जिसमें प्रायः वाचिक भार ही प्रयुक्त होता है l
(ग) कभी-कभी कलों का प्रतिबन्ध पूरा होने पर भी लय बाधित हो जाती है अर्थात लय होने पर कलों का प्रतिबन्ध होना अनिवार्य है किन्तु कलों का प्रतिबन्ध होने पर लय का होना अनिवार्य नहीं है l
उदाहरण :
श्रीरा/म दिव्य/ रूप/ को , लंके/श गया/ जान l
4+4+3+2 , 4+4+3
चौकल+चौकल+त्रिकल+द्विकल, चौकल+चौकल+त्रिकल
अर्थात इस पंक्ति में दोहा छंद के अनुसार कलों का प्रतिबन्ध पूरा है फिर भी यह पंक्ति दोहा छंद की लय में नहीं है l
यह पंक्ति दोहे की लय में इस प्रकार होगी —
दिव्य/रूप/ श्री/राम/ को, जान/ गया/ लं/केश l
3+3+2+3+2 , 3+3+2+3
(घ) मापनीमुक्त छंदों में लय ही सर्वोपरि है जो मुख्यतः अनुकरण से आती है l अस्तु रचनाकारों के लिए उचित है कि वह पहले किसी जाने-समझे छंद को सस्वर गाकर उसकी लय को मन में स्थापित करे , फिर उसी लय पर अपना छंद रचे और अंत में मात्राभार तथा नियमों की जांच कर लें l
(च) मापनीमुक्त मात्रिक छंद तीन प्रकार के होते हैं – 1) सम मात्रिक छंद जिनके सभी चरणों के मात्राभार और नियम सामान होते हैं जैसे चौपाई, रोला आदि 2) अर्धसम मात्रिक छंद जिनमें मात्राभार और नियम की दृष्टि से विषम चरण परस्पर एक सामान होते है और उनसे भिन्न सम चरण परस्पर एक सामान होते हैं जैसे दोहा, सोरठा, बरवै आदि तथा 3) विषम मात्रिक छंद जिनके चरणों के मात्राभार और नियम भिन्न होते हैं किन्तु अर्धसम मात्रिक नहीं होते हैं जैसे कुण्डलिया, कुण्डलिनी, छप्पय आदि l
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