मौन का साम्राज्य” एक गहन दार्शनिक कविता है जिसमें बताया गया है कि शब्द बंधन हैं और मौन ही सच्ची मुक्ति है। पढ़ें यह प्रेरणादायक रचना जो शांति और आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।
आज का युग शोर और शब्दों से भरा हुआ है। हम दिन-रात बोलते हैं, बहस करते हैं और अपनी बात साबित करने में लगे रहते हैं। लेकिन सच यह है कि शब्द हमें केवल सतही ज्ञान देते हैं। असली अनुभव और आत्मज्ञान मौन में छिपा है। यही संदेश हमें “मौन का साम्राज्य” कविता में मिलता है।
मौन का साम्राज्य
हम शब्दों को
दिन–रात बटोरते रहते हैं,
जैसे रेत को मुट्ठी में भरकर
समझते हैं कि समुद्र पकड़ लिया।
पुस्तकों से, वाद–विवादों से,
संवादों और भाषणों से
हम शब्दों का अंबार लगा लेते हैं।
और फिर गर्व से कहते हैं—
“देखो, हमें सब कुछ कहना आता है।”
पर भूल जाते हैं—
शब्द केवल चाबी हैं,
दरवाज़ा खोल सकते हैं,
अंदर जाने का अनुभव नहीं दे सकते।
जब हम बोलना शुरू करते हैं,
तो सुनना छूट जाता है,
सीखना रुक जाता है,
और अक्सर विवाद खड़ा हो जाता है।
सारे हमारे शब्द और विचार
दूसरों से उधार लिए हुए हैं,
जितना भी जाना—
वह सब किसी और की ज्योति से मिला है।
पर जब हम
सब जानकर भी मौन रहते हैं,
तो वही है हमारा मौलिक,
हमारा अपना।
हमारे सारे झगड़े,
सारी लड़ाइयाँ
बस “मेरा–मेरा” कहने से जन्म लेती हैं।
मेरा घर, मेरा धर्म, मेरा विचार,
मेरा ईश्वर, मेरा देश—
इन्हीं “मेरा” की दीवारों से
मानवता बार–बार बँट जाती है।
शब्द में युद्ध है,
मौन में शांति है।
शब्द बंधन है,
मौन मुक्ति है।
शब्द कारागृह है।
शब्द हमारे अपने नहीं हैं।
शब्दों के बीच जो खालीपन है,
उसी में मौन जन्म लेता है।
मौन में साक्षी भाव आता है—
जहाँ देखने वाला
सिर्फ देखता है,
कुछ पकड़ता नहीं, कुछ बाँधता नहीं।
हमें शब्दों के बीच
उस खाली जगह को बढ़ाना है,
उस रिक्तता को फैलाना है।
तभी मौन प्रकट होगा।
और जब मौन प्रकट होता है,
तब केवल मन शेष रह जाता है।
वही शुद्ध मन—
जो आत्मा है।
यही है जीते-जी मोक्ष।
शांत मन संसार को चलाने में
कभी बाधक नहीं होता।
शांत मन किसी को अशांत नहीं करता।
बल्कि जब अशांत मन
प्रतिक्रिया की आग लेकर आता है,
तो मौन की ठंडी छाया
उसे शांत कर देती है।
यही मौन है
जो संसार को स्वर्ग बना सकता है।
अशांत मन ही संसार है,
और शांत मन ही परमात्मा।
जो मौन को साध लेता है,
वह संसार से ऊपर उठकर
परमात्मा में विलीन हो जाता है।
शांत मन होने से
आदमी अपने आपको सुनता है,
अपनी बेचैनी को पहचान लेता है।
मन को शब्दों से मुक्त करना
अपने कारावास की खिड़की खोलने जैसा है—
तभी भीतर प्रकाश आता है।
शांत मन होना
परमात्मा के लिए
दरवाज़ा खोल देने जैसा है।
मौन ही असली विजेता है,
क्योंकि उसमें बंधन नहीं,
सिर्फ़ मुक्ति है।
कविता का संदेश (Meaning of the Poem)
- शब्द केवल साधन हैं, अनुभव नहीं।
- बोलने से अक्सर सुनना और सीखना छूट जाता है।
- झगड़े और युद्ध “मेरा–मेरा” कहने से जन्म लेते हैं।
- मौन ही शांति, स्वतंत्रता और आत्मज्ञान का मार्ग है।
- शांत मन ही परमात्मा है, जबकि अशांत मन ही संसार है।
- मौन आत्मा तक पहुँचने का द्वार है।
निष्कर्ष (Conclusion)
“मौन का साम्राज्य” हमें यह सिखाता है कि जीवन में शब्दों से अधिक मौन महत्वपूर्ण है। मौन ही वह साधना है जिससे आत्मा शुद्ध होती है और परमात्मा का साक्षात्कार होता है। यही मौन संसार को स्वर्ग बना सकता है।