महा देश का ग्रंथ महाभारत

महा देश का ग्रंथ महाभारत

अवसर मिलता सर्वदा,
पर मन का अभिमान।
आलस और प्रमाद से
नही सकें पहचान।।
तब गुरुवर, गणनाथ मिलि,
पथ की दें पहचान।
जो जाने वे कर लिए ,
निज हित करके ध्यान।।
हर मानव का ध्येय हो,
पूजा तीन प्रकार।
पित्र, गुरू और देव का ,
पूजन से सत्कार।।
जीवन के इस युद्ध मे,
प्रबल बुद्धि जब होय।
तब डगमग श्रद्धा रहे,
दुख भोगे हर कोय।।
यह दुख गणपति ध्यान से ,
कट जाता तत्काल।
श्रद्धा युत विश्वास से,
पूजें रहें निहाल।।
शिवजी के ही परशु से,
परशु राम का वार।
एकदन्त कर रख दिया ,
थे माता के द्वार।।
उसी दाँत से लिख दिए,
महा -देश का ग्रंथ।
जिसे महा भारत कहें,
दुनिया के हर पंथ।।


एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *