मजबूरी पर कविता-मनोज बाथरे

मजबूरी पर कविता

मजबूरी इंसान को
क्या से क्या
बना देती है
कही ऊपर उठाती है
तो कही
झुका देती है
इन्ही के चलते
इंसान अपनी
मजबूरी के चलते
एकदम हताश हो
जाता है
पर इससे निकलने
के लिए
प्रयास बेहद जरूरी है
मनोज बाथरे चीचली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *