मनुष्य पर कविता
मनुष्य रचना के आधार से मानवीय जीवन मूल्य तथा दो मनुष्यों के बीच मनुष्यता का बोध उठाने का विचार मनुष्य शीर्षक द्वारा प्रकट करना चाहती हूं।
मनुष्य पर कविता
मनुष्य
केवल उसे पुकारने में
क्या वह
मनुष्य बनता है?
समाज से, परिवार से
अलग रहकर
अधर्म व
अनीती
क्रूर व्यवहार करते
एक तरफ़
पागल बन
घुमते-फिरते
मनुष्य को
मनुष्य कैसे कहें
असल में
मनुष्य बनता है
या उसे पुकारने का
योग्यता तब मिलता है
जब उसे
मनुष्यता का अहसास हों
मानवीय संवेदना
उठें
अंदर से
दूसरों के प्रति
नंदना अय्यर