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नारी के अधिकार पर कविता – बाबूराम सिंह

नारी के अधिकार पर कविता – बाबूराम सिंह

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नारी है नारायणी जननी जगत जीव की ,
सबहीं की गुरु सारी सृष्टि की श्रृंगार है ।
जननीकी जननीभी नारीकी विशेषता है ,
महिमा नारी की सदा अगम अपार है ।
जननी बहिन बहु -बेटी धर्मपत्नी बन ,
सुखद बनाती सदा घर परिवार है।
आदर सत्कार मान”कवि बाबूराम “कर ,
औरत के बिना सही नहीं विस्तार है ।

करुणा की सागर व ममता की मूरत है ,
प्यार व दुलार स्नेह श्रध्दा की सार है ।
सेवा सिरमौर सुख -दुख संगिनी है नार ,
निज सुख वार बच्चों की पालनहार है ।
औरत अनुप अर्धांगिनी है जन -जन की ,
सब कुछ में उसका आधा अधिकार है ।
बच्चा बूढा़ जवान सब पै”कवि बाबूराम “
नारी का सच अनगिनत उपकार है।

चरणों में महावर चूड़ी कर माथे बिन्दी,
मांग में सोहाग रूप सिन्दूर सवार है ।
जिस घर देश में अपमान होत नारी का ,
निश्चित नरक नाश वहां तैयार है ।
सोचिए विचारिए सुधारिए स्वयं कोसभी ,
नारी को भी जीनेका समान अधिकार है ।
करता जो नर नारी निन्दा अनादर नित ,
“कवि बाबूराम “वह वसुधा का भार है ।

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बाबूराम सिंह कवि
ग्राम -बड़का खुटहाँ ,पोस्ट -विजयीपुर
जिला-गोपालगंज(बिहार)841508
मो० नं० – 9572105032

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